Last Updated on October 20, 2021 by Manoranjan Pandey
खबर काम की आज आपके लिए प्रस्तुत करता है. …
1. “मनुष्य को धन से नही मन से अमीर बनना चाहिए क्योकि मंदिरों में स्वर्ण कलश भले हीं लगे हो लेकिन नतमस्तक पत्थर की सीढ़ियों पर ही होना पड़ता है”.
एक सेठ के पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसका मन अशांत था, एक संत को सेठ ने दक्षिणा में स्वर्ण मुद्राएं दीं और कहा कि मन शांत करने का कोई उपाय बताएं
मन की शांति पाने के लिए सबसे पहले हमें इच्छाओं का त्याग करना होगा। इस संबंध एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक सेठ था। उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी, सुख-सुविधा की हर चीज थी, लेकिन उसका मन अशांत था।
सेठ चाहता था कि उसका मन शांत रहे, लेकिन उसे शांति नहीं मिल रही थी। एक दिन उसके नगर में विद्वान संत पहुंचे। गांव के लोग संत से मिलने पहुंच रहे थे। संत गांव के लोगों की सभी परेशानियों को दूर करने के उपाय बता रहे थे। जब सेठ को ये बात मालूम हुई तो वह भी संत से मिलने पहुंच गया।
सेठ ने संत के सामने स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैलियां रख दीं और कहा कि मेरा मन बहुत अशांत है, कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मुझे शांति मिल सके।
संत ने सेठ से कहा कि ये मुद्राएं यहां से उठा लो, मैं गरीबों से दान नहीं लेता हूं। ये सुनकर सेठ हैरान हो गया। उसने कहा कि गुरुदेव मैं क्षेत्र का सबसे धनी सेठ हूं, आप मुझे गरीब क्यों बोल रहे हैं?
संत ने जवाब दिया कि अगर तू धनवान है तो मेरे पास क्यों आया है? सेठ ने कहा कि महाराज आपका आशीर्वाद मिल जाएगा तो मैं आसपास से सभी क्षेत्रों का सबसे धनी इंसान बन जाऊंगा और मेरे मन को शांति मिल जाएगी।
संत ने कहा कि सेठजी तुम्हारी इन इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, अभी क्षेत्र का सबसे अमीर इंसान बनना है, फिर बाद में देश का सबसे अमीर सेठ बनना चाहोगे, ऐसे में तुम खुद को गरीबों से अलग क्यों मानते हो? भगवान का दिया सबकुछ होने के बाद भी तुम्हें और चाहिए, धन के लोभ में तुम्हें कभी भी शांति नहीं मिल सकती है। जब तक हम इच्छाओं का त्याग नहीं करेंगे, तब तक हमारा मन शांत नहीं हो सकता है। इसीलिए अगर शांति चाहते हो तो सभी इच्छाओं का त्याग कर दो।
जीवन प्रबंधन
इस प्रसंग की सीख यह है कि जब तक हमारे मन में सुख-सुविधाएं पाने की इच्छाएं रहेंगी, हम लगातार धन बढ़ाने के बारे में सोचते रहेंगे, ऐसी स्थिति में मन सदैव अशांत ही रहेगा। मन की शांति चाहिए तो सभी इच्छाओं का त्याग करना जरूरी है।
2. ज़मीन और मुक़द्दर की, एक ही फितरत होती है
जो भी बोया जाएगा उसका निकलना तय है.
3. सबके शब्द तो यदा-कदा चुभते ही रहते हैं परंतु जब
मौन चुभ जाए किसी का तो संभल जाना चाहिए.