भाग्य बड़ा या कर्म (एक प्रेरणा दायक कहानी) | kahani Bhagya Bada Ya Karm

Last Updated on August 8, 2023 by Manu Bhai

एक प्रेरणादायक कहानी “भाग्य बड़ा या कर्म” 

भाग्य बड़ा या कर्म : इस दुनियां में दो तरह के इंसान हैं, एक जो यह मानते हैं की भाग्य वाग्य कुछ नहीं होता और वे कर्म की प्रधानता में ही विश्वास करते हैं. दूसरे वे लोग हैं जो भाग्यवादी हैं यानि उनका किस्मत कनेक्शन में पुरा भरोसा होता है. उनका दृढ़ विश्वास होता है की जो भाग्य या किस्मत में लिखा है वो हो के हीं रहेगा. यानि इंसान कर्म और भाग्य की दो धुरियों में घूमता रहता है और अंततः दुनियां से अलविदा हो जाता है.

आज का युवा भी यही सोचता है कि बिना कुछ किए ही उसे वह सबकुछ मिल जाए जो वह चाहता है। इस विषय पर अक्सर बहस होती रही है कि आखिर कौन बड़ा है, भाग्य या कर्म? अनंतकाल से हीं यह बहस का विषय रहा है कि कर्म ज्यादा महत्वपूर्ण है या भाग्य.

जब अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में अपने स्वजनों को युद्ध के लिए अपने सामने खड़ा पाया तो उसका ‍शरीर निस्तेज हो गया। हाथों से धनुष छूट गया। प्राणहीन मनुष्य के समान वह धरती पर गिर गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता के कर्म ज्ञान का उपदेश दिया.
भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण भी अर्जुन से कर्म करने कि हीं बात कहते हैं, अर्जुन को कर्म करने का हीं उपदेश देते हैं. श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन राज्य तुम्हारे भाग्य में है या नहीं ये तो बाद कि बात है, परन्तु युद्ध तो तुम्हे पहले लड़ना हीं होगा, कर्म तो तुम्हे करना हीं होगा। 

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तुलसीदास जी ने भी श्री रामचरित मानस में कर्म की हीं प्रधानता बताई है. ‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा’ अर्थात युग तो कर्म का हीं है, प्रधानता तो कर्म की हीं है, कर्म किये बिना कुछ भी संभव नहीं है.

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तो आइये अब उस कहानी की शुरुआत करते हैं जिसमें बहुत बड़ी सिख छिपी हुई है……

वक़्त से लड़कर जो नसीब बदल दें, इंसान वही जो अपनी तकदीर बदल दें

कल क्या होगा कभी ना सोचो, क्या पता वक़्त कल खुद अपनी तस्वीर बदल दें !

“भाग्य बड़ा या कर्म” एक प्रेरणादायक कहानी 

Karm Bada Ya Bhagya

एक जंगल के दोनों ओर अलग-अलग राजाओं का राज्य था. और उसी जंगल में एक महात्मा रहते थे जिन्हे दोनों राजा अपना गुरु मानते थे. उसी जंगल के बीचो-बिच एक नदी बहती थीं. अक्सर उसी नदी को लेकर दोनों राज्यों के बिच झगड़े-फसाद होते रहते थे. एक बार तो बात बिगड़ते बिगड़ते युद्ध तक आ पहुंची. कोई भी राजा सुलह को तैयार नहीं था, सो युद्ध तो निश्चय हीं था. दोनों राजाओं ने युद्ध से पहले महात्मा का आशीर्वाद लेने की सोची और पहुंच गए जंगल की उस कुटिया में जहाँ महात्मा रहते थे.

पहले एक राजा आया और उसने महात्मा से युद्ध में विजय का आशीर्वाद माँगा. महात्मा ने कुछ देर उस राजा को निहारा और कहा की राजन तुम्हारे भाग्य में जीत नहीं दिखती, आगे ईश्वर की मर्जी. यह सुनकर पहला राजा थोड़ा विचलित तो हुआ, फिर उसने सोचा कि यदि हारना हीं है तो पूरी ताकत से लड़ेंगे परन्तु यूँ हीं हार नहीं मानेंगे. और अगर हार भी गए तो हार को भी औरों के लिए उदाहरण बना देंगे, परन्तु आसानी से हार नहीं मानेंगे. यह निश्चय कर वह वहां से चला गया.

दूसरा राजा भी जीत का आशीर्वाद लेने महात्मा के पास आया, उनके पैर छुए और विजय श्री का आशीर्वाद माँगा. महात्मा ने उसे भी कुछ देर निहारा और कहा कि बेटा भाग्य तो तुम्हारे साथ हीं है. यह सुनकर राजा तो खुशी से भर गया और वापस जा कर निश्चिन्त हो गया, जैसे कि उसने युद्ध तो जीत ही लिया हो. 

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अंततः युद्ध का दिन आया, दोनों सेना एक दूसरे के आमने-सामने थे और युद्ध का बिगुल बज गया, युद्ध प्रारम्भ हो चूका था. एक तरफ कि सेना यह सोच कर लड़ रही थीं कि चाहे किस्मत में हार हो पर हम हार नहीं मानेंगे. हम अपना सर्वश्रेष्ठ कोशिश करेंगे, अपना सर्वस्व झोंक देंगे. और वहीं दूसरी तरफ की सेना एक निश्चिन्त मानसिकता के साथ लड़ रही थी की जितना तो हमें हीं है तो घबराना कैसा.

लड़ते लड़ते दूसरी सेना के राजा के घोड़े के पैर का नाल भी निकल गया और घोड़ा लड़खड़ाने लगा पर राजा ने ध्यान हीं नहीं दिया. क्योंकि उसके दिमाग़ में एक हीं बात चल रहा था की जब जीत मेरे भाग्य में है हीं फिर किस बात की चिंता.

भाग्य बड़ा या कर्म

कुछ ही क्षण बाद दूसरे राजा का घोड़ा लड़खड़ा कर गिर गया जिससे राजा भी ज़मीन पे गिर पड़ा और घायल हो गया और वह दुश्मनों के बिच घिर गया. पहले राजा के सैनिको ने उसे बंधक बना लिए एवं उसे अपने राजा को सौंप दिया. युद्ध का निर्णय हो चूका था, युद्ध का परिणाम बिलकुल महात्मा के भविष्यवाणी के उलट था. निर्णय के बाद महात्मा भी वहाँ पहुंच गए, अब दोनों राजाओं को बड़ी जिज्ञासा थी कि आखिर भाग्य का लिखा बदल कैसे गया.

दोनों ने महात्मा से प्रश्न किया कि गुरुवर आखिर ये कैसे संभव हुआ? महात्मा ने मुस्कुराते हुये उत्तर दिया, राजन भाग्य नहीं बदला वो बिलकुल अपने जगह सही है पर तुम लोग बदल गए हो. उन्होंने विजेता राजा की ओर इशारा करते हुये कहा कि अब आपको हीं देखो राजन, आपने संभावित हार के बारे में सुनकर दिन रात एक कर दिया. सबकुछ भूल कर आप जबरदस्त तैयारी में जुट गए, यह सोच कर कि परिणाम चाहे जो भी हो पर हार नहीं मानूँगा. खुद हर बात का ख्याल रखा, खुद हीं हर रणनीति बनाई जबकि पहले आपकी योजना सेनापति के भरोसे युद्ध लड़ने कि थी.

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अब महात्मा ने पराजित राजा कि ओर इशारा करते हुये कहा कि राजन आपने तो युद्ध से पहले ही जीत का जश्न मानना शुरू कर दिया था. आपने तो अपने घोड़े कि नाल तक का ख्याल नहीं रखा फिर आप इतनी बड़ी सेना को कैसे सँभालते और कैसे उनको कुशल नेतृत्व देते. और हुआ वही जो होना लिखा था. भाग्य नहीं बदला पर जिनके भाग्य में जो लिखा था उन्होंने हीं अपना व्यक्तित्व बदल लिया फिर बेचारा भाग्य क्या करता.

दोस्तों हमें इस कहानी से यह सिख मिलती है कि भाग्य उस लोहे कि तरह वहीं खींचा चला जाता है जहाँ कर्म का चुम्बक हो. हम भाग्य के आधीन नहीं हैं हम तो स्वयं भाग्य के निर्माता हैं.
यह सत्य है कि भाग्य भी उन लोगों का साथ देता है जो कर्म करते हैं। किसी खुरदरे पत्थर को चिकना बनाने के लिए हमें उसे रोज घिसना पड़ेगा। ऐसा ही जिंदगी में समझें हम जिस भी क्षेत्र में हों, स्तर पर हों हम अपना कर्म करते रहें बिना फल की चिंता किए।

2. इस कथा से जानिए कर्म बड़ा या भाग्य!

इस संसार में कर्म को मानने वाले लोग कहते हैं भाग्य कुछ नहीं होता और भाग्यवादी लोग यानि जो सिर्फ भाग्य पे भरोसा करते हैं, वो कहते हैं किस्मत में जो कुछ लिखा होगा वही होकर रहेगा। अर्थात इंसान कर्म और भाग्य इन 2 बिंदुओं की धुरी पर घूमता रहता है और एक दिन इस जग को अलविदा कहकर चला जाता है।

तो चलिए भाग्य और कर्म को अच्छे से समझने के लिए पुराणों में बताया गया एक कहानी से समझते है।
एक बार की बात है कि देवर्षि नारद वैकुंठ धाम गए। वहां उन्होंने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और श्रीहरि विष्णु भगवन से कहा, ‘‘ हे प्रभु’ पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म की राह पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा, और जो पाप कर रहे हैं उनका सब भला हो रहा है।’’ उनके मजे ही मजे हैं।

भाग्य बड़ा या कर्म

तब श्रीहरि विष्णु भगवान् ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है ‘नारद’ जो भी हो रहा है सब नियति के कारण हो रहा है।’’

नारद बोले, ‘‘प्रभु ‘ मैं तो यह सब पृथ्वीलोक देखकर आ रहा हूं, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।’’

श्री विष्णु भगवान ने कहा, ‘‘नारद कोई ऐसी घटना बताओ जो तुमने देखा हो। तब..
नारद जी ने कहा: अभी मैं पृथ्वीलोक के एक जंगल से आ रहा हूँ। मैंने देखा कि वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था। तभी एक चोर उधर से गुजर रहा था। वह चोर गाय को फंसा हुआ देखकर भी रुका नहीं, बल्कि वह उसपर पैर रखकर दलदल लांघकर आगे निकल गया। “आश्चर्य तो तब हुआ जब आगे जाकर उस चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली। ’’

थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को दलदल में फंसा देख उसको बचाने की पूरी कोशिश की। साधू ने अपने पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया। लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु जब कुछ दूर आगे गया, तो एक गड्ढे में गिर गया। ‘हे प्रभु’ अब आप ही बताइए यह कौन सा न्याय है?

देवर्षि नारद की पूरी बात सुनने के बाद श्री हरी बोले,- यह तो सही ही हुआ नारद ! जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था उसकी किस्मत में तो पहले से ही एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं।
परन्तु …. प्रभु , नारद बोले – बेचारे उस साधू ने तो कोई पाप नहीं किया था, फिर उसे गड्ढे में गिरकर मृत्यु क्यों मिली !

तब श्री विष्णु भगवान्व ने नारद को समझाया – नारद उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में उस समय बहुत ही कष्टदायक मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी-सी चोट में बदल गई जिससे उसे मृत्यु के समय बहुत ही कम दर्द का आभाष हुआ और वह स्वर्ग के भागी बना।
अब नारद जी संतुष्ट थे।
इसलिए इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है।

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कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करहि सो तस फल चाखा।।

भावार्थ – तुलसीदास जी कहते हैं कि यह विश्व कर्म प्रधान है। मनुष्य जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। यानी जैसे कर्म वह करता है, उसे उनका वैसा ही फल मिल जाता है। यहाँ कोई भी हेराफेरी नहीं होती। यह सीधा-सा गणित है। अच्छे कर्म करने पर सुख-समृद्धि मिलती है। इसके विपरीत बुरे कर्म करने पर दुख और परेशानियाँ ही मिलती हैं। 

एक समय की बात है, एक गांव में एक बड़ा दुखी आदमी रहता था। उसके पास धन की कमी थी और उसका परिवार गरीबी की चपेट में आया हुआ था। वह अपने अच्छे दिनों की यादों में खोया रहता था और अपने भाग्य को दोषी मानता था।

एक दिन, वह एक बुढ़े ब्राह्मण के पास गया और अपनी समस्याओं का विवरण किया। ब्राह्मण ने उसे बताया कि उसे भाग्य को दोषी ठहराने की बजाय कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। वह बताया कि कर्मों का प्रभाव भाग्य के प्रति अधिक होता है और अपने कर्मों के माध्यम से मनुष्य अपना भाग्य बदल सकता है। ब्राह्मण ने उसे अपने साथ अपने देश में यात्रा करने का आह्वान किया।

यात्रा के दौरान ब्राह्मण ने उसे ज्ञानवान संत मिले। संत ने उसे अपने पास बुलाया और उसे अपनी कठिनाइयों का समाधान बताया। संत ने कहा, “भाई, तुम खुदा की कृपा से जीवन में सुखी हो सकते हो। खुदा तुम्हारे कर्मों के आधार पर तुम्हें फल देता है। अगर तुम अच्छे कर्म करोगे, तो खुदा तुम्हें सुख देगा।”

उसके मन में एक नई आशा जागी। उसने ध्यान दिया और एक नेत्रों में चमक दिखाई दी। वह ब्राह्मण और संत के पास जाकर धन्यवाद किया और अपना आभार व्यक्त किया। उसने अपने कर्मों की प्रशंसा की और उन्हें अपने दुःखों से निजात पाने के लिए धन्यवाद दिया।

धीरे-धीरे, उसका जीवन बदलने लगा। वह सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने लगा और अपने कर्मों में लग गया। उसने अपने परिवार को संभालना शुरू किया और धन की कमी को दूर करने के लिए मेहनत की।

दिन-रात मेहनत करने के बाद, उसके परिवार की स्थिति सुधारने लगी। धीरे-धीरे धन का आगमन होने लगा और उसके जीवन में खुशियां आने लगीं। वह अपने भाग्य को स्वयं ही बदलने की शक्ति पा चुका था।

एक दिन, वह फिर संत के पास गया और उसे देखकर धन्यवाद दिया। वह बताने लगा कि उसने कर्म के माध्यम से अपना भाग्य बदल दिया है। संत ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, “बेटा, यह तुम्हारे अच्छे कर्मों का फल है। तुमने सच में अपने भाग्य को बदल दिया है।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि भाग्य और कर्म दोनों में तालमेल होना चाहिए। हालांकि, भाग्य एक महत्वपूर्ण अंश है, लेकिन हमें अपने कर्मों पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर हम सच्ची मेहनत करें, ईमानदारी से काम करें, और सबका भला करने का प्रयास करें, तो हम खुदा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने भाग्य को भी बदल सकते हैं।

निष्कर्ष

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि भाग्य और कर्म एक दूसरे से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं। हमें मेहनत करनी चाहिए, निरंतरता बनाए रखनी चाहिए, और संघर्ष में निरंतरता से अग्रसर रहना चाहिए। हमें अपने कर्मों पर विश्वास रखना चाहिए और समय के साथ सही अवसरों का सम्मान करना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. क्या भाग्य हमारे कर्मों को प्रभावित नहीं करता?

भाग्य और कर्म दोनों में संबंध होता है। हमारे कर्म ही हमारे भाग्य को निर्मित करते हैं।

2. क्या भाग्य केवल घटनाओं के आधार पर ही मापा जा सकता है?

नहीं, भाग्य केवल घटनाओं के आधार पर ही मापा नहीं जा सकता है। यह हमारे कर्मों और संकल्पों के साथ जुड़ा हुआ है।

3. क्या कर्म हमेशा अवसरों को प्रदान करेगा?

हाँ, कर्म हमेशा अवसरों को प्रदान करेगा, लेकिन हमें उन अवसरों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें सही समय पर पहचानना चाहिए।

4. क्या भाग्य सबके लिए समान होता है?

नहीं, भाग्य सबके लिए समान नहीं होता है। हर व्यक्ति का भाग्य उनके कर्मों और संघर्ष के आधार पर निर्मित होता है।

5. क्या हमें भाग्य को दोषी ठहराना चाहिए?

नहीं, हमें भाग्य को दोषी ठहराने की बजाय अपने कर्मों पर विश्वास रखना चाहिए और मेहनत करनी चाहिए। यह हमारी सफलता के मार्ग को खोजने में सहायता करेगा।

इस प्रकार से, हम देखते हैं कि भाग्य और कर्म के बीच गहरा संबंध है। हमें अपने कर्मों पर विश्वास रखना चाहिए और संघर्ष में निरंतरता के साथ अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ना चाहिए। भाग्य सिर्फ घटनाओं का ही मापदंड नहीं है, बल्कि हमारे कर्मों के माध्यम से हम अपना भाग्य स्वयं निर्मित कर सकते हैं।

धन्यवाद

दोस्तों आपको यह कहानी ‘भाग्य बड़ा या कर्म’ कैसा लगा कृपया Comment के माध्यम से अवश्य बताएं. अपना सुझाव भी दें.

नोट – आपके पास भी कोई कहानी या कुछ रोचक जानकारी हो तो कृप्या ईमेल के माध्यम से हमें भेजे. हम आपके आर्टिकल को अपने अगले पोस्ट में अवश्य शामिल करेंगे. Email – khabarkaamkee@gmail.com
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4 thoughts on “भाग्य बड़ा या कर्म (एक प्रेरणा दायक कहानी) | kahani Bhagya Bada Ya Karm”

  1. बहुत अच्छा! सही बात बोले की आज कल का युवा भाग्य को ज्यादा महत्व देता है ! और वो युवा दुर्भाग्यवश मैं ही हूं! I didn’t studied properly 😖even before 10th & after 10th I lost the hope & interest of Studying 📚✏ so that’s why I destroyed whole 2017 after 10th Boards! Somehow I took admission in 11th after destroying 😖 1 year in 2018! But that depression & regret didn’t leave me & made me to grow weak 😩 & again not study 📚✏ & do hard work! I left my studies on fate g mercy of Lord Vishnu ✨ that he will help 😭 me & provide me the wisdom to study now properly to avoid 👎failure! लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ & मेरे 12th Boards में बहुत खराब Marks आए! बस मैं पता नही उसकी कृपा/ भाग्य से या अपने ही दिमाग, सूझ-बुझ से pass हो गया! मैं समझ गया
    Time is very precious & important & there is no substitute of Hard Work for Success 🏆💪 in Student life! We should not take resort of Lord Vishnu, Hanuman, Shiva for Miracles, happiness but we should work hard ourselves to utilize the precious Time ⌚ by removing that Laziness, hellish Procrastination 😴 & bad Habits/Thoughts like sexual thoughts, Mobile/Internet Addiction, Video Games, Movies, Music Addiction etc! ये सब दुर्गुण हैं जो मुझे जीवन में कभी भी सफल 😠नहीं होने देंगी😤!

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    • बहुत अच्छी बात कही आपने। मनुष्य को भाग्य से ज्यादा कर्म पर भरोसा करना चाहिए। यदि आप कर्मयोगी बनेंगे तो भाग्ययोदय हो ही जाता है। इसलिए कर्मयोगी बनिए।

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