Last Updated on October 29, 2021 by Manoranjan Pandey
आज के इस लेख वसंत पंचमी का महत्व में वसंत पंचमी पर मां सरस्वती (Maa Sarasvati) की पूजा की जाती है इसके बारे में बताएँगे और इसी दिन को विद्या आरंभ भी किया जाता है। इस मौके पर भारत में विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
विद्या की देवी सरस्वती की पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े हर्षो-उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पिले वस्त्र पहनने का रिवाज़ है, खास कर स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।
सदियों से भारत भूमि त्योहारों और पर्वों की भूमी रही है, और सनातन उसकी आत्मा. सनातन धर्म को ही हिन्दू धर्म भी कहते है, जो सैकड़ो पर्वों को मानाने वाला धर्म है. उन्हीं पर्वों में से एक है वसंत पंचमी या श्रीपंचमी का त्योहार है.
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वसंत पंचमी का महत्व क्या है और कैसे मनाया जाता है सरस्वती पूजा
प्राचीन भारत में पूरे साल को 6 मौसमों या ऋतु में बाँटा जाता था, उनमें वसंत ऋतु लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। वसंत ऋतु की खूबसूरती ये है कि इस समय फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में पिले-पिले सरसों सोना की तरह चमकने लगता, जौ-गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर अमौड़ी आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं एवं भंवरे भंवराने लगते। प्रति वर्ष माघ महीने के पांचवे दिन वसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए एक बड़ा जश्न मनाया जाता था. जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती थी. जो वसंत पंचमी कहलाता था. शास्त्रों में भी वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी या श्रीपंचमी से उल्लेखित किया गया है, वहीं पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक धर्मग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण किया गया है।
वसंत पंचमी पर्व की कथा
ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से की. परन्तु ब्रह्म जी अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि संभवतः कुछ न कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। फिर एक दिन ब्रह्म जी ने विष्णु भगवान से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर उनके द्वारा छिड़का गया जलकण बिखरते ही चारो ओर कंपन होने लगा। और फिर वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह अद्भुत शक्ति प्राकट्य एक चार भुजाओं वाली सुंदर स्त्री का था, जिसके एक हाथ में वीणा तथा उनका दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य बचें दो हाथों में से एक में पुस्तक एवं दूसरे में माला थी। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीवों को वाणी कि प्राप्ती हो गई। जलधारा में कोलाहल और हलचल व्याप्त हो गया तो पवन के चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी कहा और उन्हें सरस्वती से सम्बोधित किया। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित कई अन्य नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि की दाता हैं। इनके द्वारा संगीत की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें संगीत की देवी भी कहते हैं। चुकी माँ सरस्वती का प्राकट्य माघ बसन्त पंचमी के दिन होने के कारण इस दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये देवी हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो बुद्धि, विद्या आचार और मेधा है उसका आधार माता सरस्वती हैं।
पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने माता सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वसंत पंचमी के दिन आपकी भी आराधना की जाएगी. और इस प्रकार भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक निरंतर जारी है.
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वसंत पंचमी पर्व का महत्व
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव ही नहीं अपितु पशु-पक्षी तक उल्लास और हर्ष से भर जाते हैं। हर दिन एक नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
वैसे तो माघ का यह पवित्र मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस मानाने की प्रथा रही है. जो शिक्षाविद, ज्ञानी, विद्वान भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वेलोग इस पावन दिवस पर मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की कामना करते हैं। कलाकारों के लिए इस पावन पर्व से महत्वपूर्ण, शायद ही कोई पर्व होगा. जो महत्व योद्धाओ के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो महत्व विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो महत्व व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीवाली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का होता है। चाहे वे लेखक हों , गायक हों या चाहे कवि हीं क्यों न हों वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
यहाँ पर्व भारत के करीब करीब सभी हिस्सों में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है.
धन्यवाद
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