बसंत पंचमी क्यों मनाया जाता है? जानिये वसंत पंचमी का महत्व, माँ सरस्वती की पूजा की कथा | Vasant Panchami ki Puja

Last Updated on August 14, 2023 by Manu Bhai

आज के इस लेख वसंत पंचमी का महत्व में वसंत पंचमी पर मां सरस्वती (Maa Sarasvati) की पूजा की जाती है इसके बारे में बताएँगे और इसी दिन को विद्या आरंभ भी किया जाता है। इस मौके पर भारत में विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। विद्या की देवी सरस्वती की पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े हर्षो-उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पिले वस्त्र पहनने का रिवाज़ है, खास कर स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। सदियों से भारत भूमि त्योहारों और पर्वों की भूमी रही है, और सनातन उसकी आत्मा. सनातन धर्म को ही हिन्दू धर्म भी कहते है, जो सैकड़ो पर्वों को मानाने वाला धर्म है. उन्हीं पर्वों में से एक है वसंत पंचमी या श्रीपंचमी का त्योहार है।

वसंत पंचमी का महत्व क्या है ? और कैसे मनाया जाता है सरस्वती पूजा 

प्राचीन भारत में पूरे साल को 6 मौसमों या ऋतु में बाँटा जाता था, उनमें वसंत ऋतु लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। वसंत ऋतु की खूबसूरती ये है कि इस समय फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में पिले-पिले सरसों सोना की तरह चमकने लगता, जौ-गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर अमौड़ी आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं एवं भंवरे भंवराने लगते। प्रति वर्ष माघ महीने के पांचवे दिन वसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए एक बड़ा जश्न मनाया जाता था. जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती थी. जो वसंत पंचमी कहलाता था. शास्त्रों में भी वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी या श्रीपंचमी से उल्लेखित किया गया है, वहीं पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक धर्मग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण किया गया है।

बसंत पंचमी क्यों मनाया जाता है?

वसंत पंचमी पर्व की कथा

ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से की. परन्तु ब्रह्म जी अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि संभवतः कुछ न कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। फिर एक दिन ब्रह्म जी ने विष्णु भगवान से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर उनके द्वारा छिड़का गया जलकण बिखरते ही चारो ओर कंपन होने लगा। और फिर वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह अद्भुत शक्ति प्राकट्य एक चार भुजाओं वाली सुंदर स्त्री का था, जिसके एक हाथ में वीणा तथा उनका दूसरा हाथ वर मुद्रा में था।

अन्य बचें दो हाथों में से एक में पुस्तक एवं दूसरे में माला थी। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीवों को वाणी कि प्राप्ती हो गई। जलधारा में कोलाहल और हलचल व्याप्त हो गया तो पवन के चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी कहा और उन्हें सरस्वती से सम्बोधित किया। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित कई अन्य नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि की दाता हैं। इनके द्वारा संगीत की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें संगीत की देवी भी कहते हैं। चुकी माँ सरस्वती का प्राकट्य माघ बसन्त पंचमी के दिन होने के कारण इस दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये देवी हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो बुद्धि, विद्या आचार और मेधा है उसका आधार माता सरस्वती हैं।

पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने माता सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वसंत पंचमी के दिन आपकी भी आराधना की जाएगी. और इस प्रकार भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक निरंतर जारी है. 

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वसंत पंचमी का महत्व
माँ सरस्वती

वसंत पंचमी पर्व का महत्व

वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव ही नहीं अपितु पशु-पक्षी तक उल्लास और हर्ष से भर जाते हैं। हर दिन एक नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। 

वैसे तो माघ का यह पवित्र मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस मानाने की प्रथा रही है. जो शिक्षाविद, ज्ञानी, विद्वान भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वेलोग इस पावन दिवस पर मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की कामना करते हैं। कलाकारों के लिए इस पावन पर्व से महत्वपूर्ण, शायद ही कोई पर्व होगा.  जो महत्व योद्धाओ के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो महत्व विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो महत्व व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीवाली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का होता है। चाहे वे लेखक हों , गायक हों या चाहे कवि हीं क्यों न हों वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

यहाँ पर्व भारत के करीब करीब सभी हिस्सों में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है.

सरस्वती पूजा 2024 की तारीख व मुहूर्त

आइए जानते हैं कि 2024 में सरस्वती पूजा कब है व सरस्वती पूजा 2024 की तारीख व मुहूर्त। माघ महीने शुक्ल पक्ष की पंचमी को सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को वसंत पंचमी के तौर पर मनाने की भी परंपरा है। यह दिन ज्ञान, विद्या, बुद्धिमत्ता, कला और संस्कृति की देवी माँ सरस्वती को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि माघ शुक्ल पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा विशेष फलदायी होती है और इस दिन माँ शारदा के पूजन का बहुत महत्व है।

इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है; दरअस्ल मान्यता है कि यह बहुत ही शुभ समय है। यूँ तो बसंत पंचमी या श्रीपंचमी के अतिरिक्त नवरात्रि और दीवाली के दिन भी माँ सरस्वती की आराधना की जाती है, लेकिन माघ शुक्ल पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है।

2024 में सरस्वती पूजा कब है?

14 फरवरी, 2024 (बुधवार)

इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा के उपरान्त कलश स्थापना कर देवी सरस्वती का पूजन आरंभ करने का विधान है। सरस्वती स्तोत्र का पाठ देवी की प्रसन्नता और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए किया जाना चाहिए। विद्या-दात्री माँ शारदा का निम्न मंत्र से ध्यान करना चाहिए –

या कुंदेंदु-तुषार-हार-धवला, या शुभ्रा – वस्त्रावृता,
या वीणा – वार – दण्ड – मंडित – करा, या श्वेत – पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत – शङ्कर – प्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दित,
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि: शेष – जाड्यापहा।।

उपर्युक्त श्लोक का अर्थ है कि जो देवी कुन्द के फूल, चन्द्रमा, हिमराशि और मोतियों के हार की तरह श्वेत वर्ण वाली है तथा जो श्वेत वस्त्र धारण करती है; जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभा पा रहा है व जो श्वेत कमल पर विजारमान हैं; ब्रह्मा-विष्णु-शिव आदि देवताओं द्वारा जो हमेशा पूजित हैं तथा जो संपूर्ण जड़ता व अज्ञान को दूर करने वाली है; ऐसी हे माँ सरस्वती! आप हमारी रक्षा करें।

सरस्वती पूजा मुहूर्त्त New Delhi, India के लिए

पूजा मुहूर्त :07:00:50 से 12:35:33 तक

अवधि : 05 घंटे 34 मिनट

सरस्वती-लक्ष्मी-पार्वती की त्रिमूर्ति में से एक देवी सरस्वाती शुद्ध बुद्धि और ज्ञान देने वाली हैं। शास्त्रों के अनुसार वे भगवान ब्रह्मा की अर्धांगिनी हैं और इसीलिए ब्रह्मा को वागीश (वाक् या वाणी का स्वामी) भी कहा जाता है। सरस्वाती पूजा के इस पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!

धन्यवाद

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