Last Updated on June 1, 2023 by Manoranjan Pandey
Jhansi Ki Rani Kavita Ki Vyakhya झाँसी की रानी कविता की व्याख्या
Jhansi Ki rani Kavita : हिंदी भाषा की महान कवियत्रियों में से एक सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गयी देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत अबतक की महानतम कविता है। कविता को सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका और बलिदान की गाथा के रूप में प्रस्तुत की गई है। सन सत्तावन के संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस और शौर्य को कवियत्री ने बड़ी सुंदरता से दर्शाया है। रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध कौशल के आगे बड़े बड़े सूरमाओं, योद्धाओं और अंग्रेज अफसरों की एक ना चली यह भी इस कविता के माध्यम से उल्लेख किया गया है।
सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित झाँसी की रानी कविता, वीर रस की कविता है। जब यह कविता लिखी गयी, हिंदी साहित्य (Hindi Sahitya) का वो दौर वीर रस का नहीं बल्कि छायावाद का दौर था। उस दौर में लिखी गयी अधिकतर कविताओं पर छायावाद मुखर था। कवियत्री (kaviyatri) ने बुंदेली लोकगीत को आधार बना कर यह कविता लिखी थी जिसे रानी लक्ष्मी बाई के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देख सकते हैं।
झाँसी की रानी कविता का परिचय
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सुभद्रा कुमारी चौहान झाँसी की रानी भारत हिंदी रानी लक्ष्मीबाई |
कवी परिचय – सुभद्रा कुमारी चौहान :
जब जब हिंदी भाषा के महान और सुप्रसिद्ध कवियों या कवियत्रियों की बात होगी उनमे सुभद्रा कुमारी चौहान सबसे अग्रणी होंगी। सुभद्रा कुमारी चौहान जी का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के निकट निहालपुर ग्राम में पिता रामनाथ सिंह जमींदार के घर हुआ था।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित किया गया था। परन्तु इन्होने प्रसिद्धि पाई झाँसी की रानी (कविता) के कारण है। सुभद्रा जी हमेशा राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, इन्होंने अपनी देशभक्ति कविताओं के कारण स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल की सजा भी पाई। उन्होंने जेल यातनाएं सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ हमेशा देशभक्ति की पाठ पद्धति है ।
झाँसी की रानी कविता का संक्षिप्त परिचय (Jhansi Ki rani kavita ka Parichay)
कविता झाँसी की रानी के प्रत्येक अंतरे का अंत एक कथन से होता है कि लेखिका ने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी बुंदेलों से सुनी है। कवी आगे की पंक्तियों में ये व्याख्या करते हैं कि वो कैसे राजवंश में जन्मीं और बाल्यकाल से ही अति वीरांगना थीं। रानी लक्ष्मीबाई वीर शिवाजी जैसे योद्धाओं की प्रसंशक और उपासक थीं।
अल्पायु में हीं लक्ष्मीबाई का विवाह राजा गंगाधर राव के साथ हो जाता है और वो उनके साथ झाँसी आ जाती हैं। परंतु राणा (राजा) के निःसंतान मृत्यु से वे शोकाकुल हो जाती हैं, और दूसरी ओर अंग्रेज डलहाॅजी रानी कि कोई संतान न देखकर बहुत प्रसन्न होता है क्योंकि अब वो झाँसी पर अधिकार कर उनका राज्य हड़प सकता था।
लेखिका यहाँ इस कविता के माध्यम से 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे वीरों को स्मरण करते हुए दूसरे राज घरानों की क्या अवस्था है उसका भी विवरण करती हैं। दूसरी ओर रानी काना और मंदरा सखियों के साथ वीरतापूर्वक युद्ध कर और वाॅकर को हराकर ग्वालियर की ओर चल पड़तीं हैं परंतु सिंधिया के द्रोह के कारण उन्हें ग्वालियर छोड़ना पड़ता है। उसके पश्चात रानी किसी प्रकार अंग्रेज अफसर स्मिथ को भी हरा दिया। परंतु रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े के अकस्मात् मृत्यु हो जाता है।
झांसी की रानी कविता की सप्रसंग व्याख्या
Jhansi Ki Rani Kavita ki Vyakhya
फिर वो ह्यूरोज़ नाम के अंग्रेज सेनापति से लड़कर वे आगे चल देतीं हैं। परंतु शत्रु के घिर आने के कारण उन पर वार पर वार होने लगते हैं। आगे एक बड़ा नाला आ जाता है, रानी ने सोचा कि वो उस नाले को पार कर लेंगी। परंतु घोड़ा नया था, वो उस नाले को पार नहीं कर पाया और नाले में गिरकर घोडा और रानी दोनों घायल हो जाती हैं। उसके पश्चात् लेखिका रानी को श्रद्धांजलि देती है।
रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और उनके पराक्रम से दुश्मन भी प्रभावित थे। बचपन से हीं मणिकर्णिका(लक्ष्मीबाई) को तलवारबाज़ी, घुड़सवारी, तीरंदाजी और निशानेबाज़ी का शौक था। वह बहुत ही छोटी उम्र में ही युद्ध-विद्या की सभी कलाओं में पारंगत हो गई थी।
भारत के कई राजवंशो समेत देश के आम जनो तक में अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध बड़ा रोष था। जिसके फलस्वरूप समस्त भारतवर्ष क्रांति कि ज्वाला भड़क उठी। झांसी में सन सत्तावन की क्रांति की बागडोर रानी लक्ष्मीबाई की हाथ में थी। जब युद्ध का विगुल बजता है तो वह युद्ध के मैदान में हजारों पुरुषो के बीच किसी पुरुष योद्धा से कही अधिक पौरुष दिखा रही थीं ।
सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित
झांसी की रानी कविता का सारांश – (Jhansi Ki Rani Kavita)
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झांसी की रानी कविता का अर्थ: प्रथम पद – कविता के इस प्रथम पद में लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस, पराक्रम और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि किस तरह रानी ने गुलाम भारत को स्वतंत्र करवाने के लिए हर भारतीय के मन में चिंगारी लगा दी थी। रानी लक्ष्मी बाई के साहस से हर भारतवासी जोश से भर उठा और सबने मन में अंग्रेजों को दूर भगाने की ठान लिया। 1857 में उन्होंने जो तलवार उठाई थी यानी अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, उससे सभी ने अपनी आज़ादी की कीमत पहचानी थी।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झांसी की रानी कविता का अर्थ: दूसरा पद – झांसी की रानी कविता के इस दूसरे पद में लेखिका कहतीं हैं कि कानपुर के नाना साहब ने बचपन में ही रानी लक्ष्मीबाई की अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित होकर, उन्हें अपनी मुंह-बोली बहन बना लिया था। लक्ष्मी बाई अपने पिता की एकमात्र संतान थीं, उनका बचपन , खेल कूद के दिन नाना के साथ ही बिता था, नाना साहब उन्हें युद्ध विद्या की शिक्षा भी दिया करते थे।
लक्ष्मीबाई बचपन से ही बाकी लड़कियों से अलग थीं। उन्हें गुड्डे-गुड़ियों के बजाय तलवार, कृपाण, तीर और बरछी चलाना अच्छा लगता था। बचपन से ही वीर शिवाजी की कहानी सुनती आई थीं, उनपर शिवाजी के जीवन का बड़ा प्रभाव था। तभी तो हर एक बुन्देल वासियों के मुंह पर रानी लक्ष्मी बाई की वीरता की कहानी हर समय रहती हैं ।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झाँसी की रानी कविता का अर्थ: तीसरा पद – झांसी की रानी कविता के इस तीसरे पद में कवियत्री ने बताया है कि लक्ष्मीबाई मानो देवी दुर्गा की अवतार हों। उनकी कमाल की व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में उन्हें महारथ थीं। यह देख मराठे सरदारों की खुशिया दुगनी हो जाती थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वे वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झाँसी की रानी कविता का अर्थ: चौथा पद – झाँसी की रानी कविता के इस चौथे पद में कवयित्री सुभद्रा कुमारी ने रानी लक्ष्मीबाई के झांसी के राजा श्री गंगाधर राव के साथ विवाह का उल्लेख किया है। कवयित्री कहती हैं की झाँसी और झाँसी के महल में चारो ओर खुशिया उमड़ पड़ी थी। लेखिका आगे कहती हैं कि उनकी जोड़ी शिव-पार्वती और अर्जुन-चित्रा की जैसी है। उनके आने से झांसी में ख़ुशियाँ और सौभाग्य आ गया था।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झाँसी की रानी कविता का अर्थ: पांचवा पद – इस पद में लक्ष्मीबाई के जीवन के कठिन समय का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके पति की असमय मृत्यु के बाद रानी अत्यंत दुखी थीं। उनके कोई संतान भी नहीं थी। वे झांसी को संभालने के लिए बिल्कुल अकेली रह गई थीं।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झाँसी की रानी कविता का अर्थ: छठा पद – झाँसी की रानी कविता के इस पद में यह बताया गया है कि झांसी के राजा की असमय मृत्यु के बाद उस समय के अंग्रेज़ अधिकारी डलहौजी को झांसी को हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया था। उसने अपनी सेना को अनाथ हो चुकी झांसी पर कब्ज़ा जमाने के लिए भेज दिया था।
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झाँसी की रानी कविता का अर्थ: सातवां पद (7) – झाँसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री बता रही हैं कि अंग्रेज़ लोग भारत में व्यापारी बनकर आए थे और फिर धीरे-धीरे उन्होने यहां के सभी बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं और रानियों से दया और सहायता की भीख मांगकर, उनका ही राज्य हड़प लिया था। परंतु लक्ष्मीबाई अन्य राजा-रानियों से विपरीत थीं और उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी एक महारानी की तरह झांसी को संभाला।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदयपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
झाँसी की रानी कविता का अर्थ: आठवा पद (8)- इस पद में उन सभी राज्यों की चर्चा की गई है, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा हड़प लिया गया था, जो कि निम्न हैं – दिल्ली, लखनऊ, बिठुर, नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक, सिंध प्रांत, पंजाब, बंगाल और मद्रास। अर्थात् ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा था, जहां बेईमान अंग्रेज़ों ने अपना अधिकार नहीं जमाया हो।
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलखा हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अब के जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय ! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
यह कविता झाँसी की रानी इतनी लोकप्रिय है कि स्कूलों के पाठ्यक्रमों तक में शामिल कर लिया गया है। CBSE Class 6 Hindi Chapter 10 Jhansi Ki Rani Poem Solution के रूप में इस लेख का प्रयोग किया जा सकता है । इंटरनेट पर कई लोग इस कविता को इस प्रकार भी सर्च करते हैं Jhansi Ki Rani Poem in Hindi Summary या hindi Kavita Jhansi Ki rani, इत्यादि। इस लेख के माध्यम से ये भी जानिये jhansi ki rani class 6 summary
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