Last Updated on August 14, 2023 by Manu Bhai
“खजुराहो” पर्यटकों का कला पूर्ण स्वर्ग ! Importance of Khajuraho temples History
“Khajuraho” the perfect paradise of the art for tourists!
Importance of Khajuraho temples History: अतीत के स्वर्णिम साध्य के साथ वर्तमान में गौरवपूर्ण मुद्रा में खड़ा खजुराहो अपने अद्भुत और अकल्पनीय शिल्पकला, स्थापत्य कला, मूर्ति कला और अपने कलापूर्ण मंदिरो के लिए विश्व के tourist map पर एक अहम् स्थान रखता है. Khajuraho is currently standing in its glory for its wonderful and unimaginable sculpture, architecture, statue art and its artistic temples.
मध्यकाल से हीं 9th and 10th Ce. AD के मंदिरो में नारी सौंदर्य एवं कामशास्त्र सम्बन्धी अनेक प्रकार के आसन से परिपूर्ण मूर्तियों के अंकन के लिए प्रसिद्ध है.
या यूँ कहें कि सम्भोग कि विभिन्न मुद्राओं को इन मंदिरों में बेहद ही खूबसूरती के साथ प्रदर्शित किया गया है.
खजुराहो मंदिर समूह हिन्दू एवं जैन मंदिरो का एक समूह है जो कि भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर District में आता है.
खजुराहो मंदिर समूह झाँसी से 175 KM कि दुरी पर स्थित है. एवं भारत कि राजधानी New Delhi से 650 km कि दुरी पर स्थित है, यह रेल और हवाई मार्ग से जुड़े होने कि वज़ह से देशी एवं विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
दुनियाँ भर में प्रशिद्ध खजुराहो के मंदिरों को लेकर लोगों मन में हमेशा हीं एक प्रश्न उठता है कि आखिर इन मंदिरों को बनवाया किसने होगा? तो चलिए हम थोड़े विस्तार से जानते हैं कि इन मंदिरों का इतिहास क्या है?
खजुराहो मंदिर समूह का इतिहास Khajuraho Temples History.
खजुराहो के प्रारंभिक इतिहास का कोई विशेष वर्णन नहीं रहा है. शुरूआती समय में यह नगर स्वतंत्र अस्तित्व में ना रहकर, अन्य राज्यों जे अधीन उनका हिस्सा मात्र रहा.
प्राचीन काल में वत्स जनपद में सम्मिलित यह क्षेत्र मध्यकाल में जेजाक भुक्ति के नाम से जाना जाता था तो वहीं चौदहवीं सदी में बुंदेलखंड के नाम से प्रशिद्ध हुआ. वर्तमान में भी यह क्षेत्र बुंदेलखंड के अधीन आता है.
संभवतः 9वी सदी के शुरुआत के साथ ही चन्देलों के आगमन के संकेत भी मिलता है और यहीं से शुरू हुआ खजुराहो के स्वर्णिम इतिहास का वह पन्ना जहाँ इसके कलापूर्ण मंदिरों का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ.
इब्नबतूता का यात्रा वृतांत
Khajuraho Temples History By Ibnbatuta
जब इब्नबतूता 1335 से 1342 CE तक भारत भ्रमण पे था तो वह संभवतः खजुराहो भी गया होगा, तभी उसने अपने भारत यात्रा वृतांत में खजुराहो के विषय में लिखा कि “कजारा में (शायद खजुराहो के लिए “कजारा” शब्द का प्रयोग किया है.)
लगभग 1 मिल लम्बे विशाल तालाब के पास कई मंदिरों का समूह है, जिनमे से कई मंदिरों और मूर्तियों को मुस्लिम आक्रांताओं ने खंडित कर दी थी. तालाब के मध्य में लाल बलुआ पत्थर यानि red sand stone के तीन-तीन खण्ड वाले तीन गुम्बद है. तालाब के चारो कोनो में भी गुम्बद है जिनमें कई सारे योगी एक समूह में रहता है.
वह आगे कहता है कि उन योगियों के बाल जटा रूप में शरीर कि लंबाई तक बढ़े हुये हैं. तपस्या के कारण उनका शरीर पीला पड़ गया है. मुस्लिम भी उन योगियों से योग सिखने के लिए उनके अनुयायी बन गएँ हैं.
इब्नबतूता का वृतांत बताता है कि 14th century में उपयुर्क्त स्थान में कई red sandstone के बने हुये मंदिर थे. इसके वृतांत में जिस तालाब का वर्णन है संभवतः वह निरोताल हो इसी तालाब के दक्षिण पूर्व में आज का Khajuraho town स्थित है.
खजुराहो का नाम “खजुराहो” कैसे पड़ा होगा?
इतने कलापूर्ण मदिरों के वैभवशाली क्षेत्र के नामकरण के सम्बन्ध में इतिहासकारों अनेक मत प्रचलित है. कुछ इसे खजूर वाहक व खजुराहा का परिवर्तित रूप मानते हैं तो वहीं कनिंघम के एक शिलालेख के according इसका मूल नाम खजूर वाटिका था. जो खजुराहा, खजूरपुरा होते होते khajuraho खजुराहो हुआ होगा.
Khajuraho Temples History ह्यूनत्सांग की ज़ुबानी
एक यात्री जिसका नाम ह्यूनत्सांग है, ने भी अपनी यात्रा वृतांत में खजुराहो का जिक्र किया है.
Khajuraho Temples History अलबरूनी की ज़ुबानी
अलबरूनी जो की एक फ़ारसी विद्वान, लेखक था उसने भी संन 1013 ईसवी में खजुराहो का उल्लेख अपने यात्रा संस्मरण में किया है.
Khajuraho Temples History कुछ अन्य लोग की जुबानी
कुछ अन्य लोगों का इसके मूल नाम के विषय में अगल अलग राय है. ऐसा भी कहा जाता है की पहले इस नगर के प्रवेश द्वार पर अलंकृत करते हुये दो 2 स्वर्ण वर्ण के खजूर वृक्ष थे, इसीलिए इसका नाम खजुराहो पड़ा होगा.
कुछ लोगों का ये कहना है की इस नगर की ओर आने के रास्ते में बहुत सारे खजूर के पेड़ो की श्रृंखला होगी, इसी वजह से इसका नाम खजुराहो रखा गया होगा.
चंदेलों का आगमन और खजुराहो का विकास
इतिहासकारों का मानना है कि चंदेल राज्य के संस्थापक चंद्रवर्मन ने यमुना और वेतवा नदी के संगम पर महोबा में आप ई राजधानी बनाई थी. इसी राजवंश के अधीन मध्य भारतीय संस्कृति, कला, शिल्पकला एवं साहित्य का चहुमुखी विकास हुआ. चंदेल वंश के शासनकाल में खजुराहो हीं नहीं बल्की आसपास के क्षेत्रों में भी कई मंदिरो, देवालयों आदि का निर्माण हुआ.
जब 9वीं शताब्दी में चंदेल राजा चंद्रवर्मन ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया तो उस समय खजुराहो अस्तित्वहीन था. इस क्षेत्र में चंद्रवर्मन के आगमन के साथ हीं शुरुआत होता है खजुराहो के स्वर्णिम इतिहास का वह पन्ना जहाँ इसके कलापूर्ण मंदिरों का निर्माण आरम्भ हुआ और यह कार्य 14वीं शताब्दी तक निरंतर चलता रहा. Khajuraho temples History starts from 9th Century.
ज्यादातर खजुराहो मंदिरों का निर्माण 950 ईसवी और 1050 ईसवी के बीच चंदेला वंश द्वारा किया गया. चंदेल राजवंशों द्वारा ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार 12वीं शताब्दी तक 85 मंदिरों का निर्माण कर दिया गया, जो कि 20 km के क्षेत्र में फैला हुआ था. आज के समय में मात्र 25 मंदिर हीं शेष बचे हुये हैं जो 6 km के क्षेत्र तक हीं सिमित रह गया है.
इसका मुख्य कारण यह था कि इस क्षेत्र को कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों का सामना करना पड़ा. इतने आक्रमण झेलने के बाद भी यहाँ शिल्पकला का विस्तार होता रहा तथ्य कला की धारा निरंतर बहती रही.
यहाँ के कलापूर्ण मंदिरों का निर्माण कार्य 14वीं शताब्दी तक किसी न किसी चंदेल राजा के काल में निरंतर चलता रहा. इसी काल में यहाँ कुछ प्रसिद्ध मंदिरो जिनमें वामन, आदिनाथ, जवारी, चतुर्भुज, तथा दूल्हादेव का भी निर्माण हुआ जो आज भी साक्ष्य के रूप में खड़े हैं. इसके बाद खजुराहो एक बार फिर से राजा याधव वर्मन के नेतृत्व में शक्ति के शिखर पर पहुंच गया.
मुस्लिम आक्रांता और खजुराहो Khajuraho temples History and Muslim Invaders
समय समय पर भारत के कई मंदिर मुसलमान आक्रमणकरियों का शिकार होते रहें हैं, जैसे कि मोहम्मद गौरी के दिल्ली आक्रमण में 27 हिन्दू मदिरों का नाश कर उन्हें मस्जिद में बदल दिया गया. जबकि महमूद गज़नी द्वारा आक्रमण कर गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मदिर को पूर्ण रूप से तबाह कर दिया गया था.
महमूद गज़नी
अबू रिहान-अल-बिरूनी (फारसी इतिहासकार) के अनुसार, महमूद गज़नी ने 1022 ई. में खजुराहो मंदिरों पर आक्रमण किया था. सन 1022 में जब महमूद गजनी ने कालिंजर के किले का घेराव कर इसके राजा विद्याधर को अपनी अधीनता स्वीकार करने पे विवश कर दिया था. परन्तु महमूद गज़नी और खजुराहो के राजा के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए तो मंदिर बच गए और राजा फिरौती देने के लिए सहमत हो गए.
कुतुबद्दीन ऐबक
सन 1203 ईसवी में जब कुतुबद्दीन ऐबक ने कालिंजर पे आक्रमण कर अधिकार स्थापित कर लिया तो खजुराहो पर भी अंधकार छा गया. अताताई लुटेरों ने कई मंदिरों को तबाह कर दिया, मुर्तिया खंडित कर दी, एवं मंदिरों को मस्जिदों में बदलना आरम्भ कर दिया.
अलाउद्दीन खिलजी
वैसे तो भारत के कई महत्वपूर्ण मंदिरों, सांस्कर्तिक स्थलों और धरोहरो के विनाश में अलाउद्दीन खिलजी का बहुत बड़ा हाथ रहा है, परतुं खजुराहो के मंदिर उसके विनाश से बच गए. क्योंकि अलाउद्दीन का मुख्य कमांडर मालिक काफ़ूर उन दिनों नालंदा के विश्व विद्यालय को जलाने में व्यस्त था. यही कारण है कि आज जो 25 मंदिर बचें हैं शायद वो भी ना बचते.
सिकंदर लोधी
सन 1495 में सिकंदर लोधी ने खजुराहो पर आक्रमण कर मंदिरों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया. उसने मूर्तियों के साथ साथ कई मंदिरों को भी खंडित किया.
इस प्रकार 16वी शताब्दी आते आते खजुराहो का महत्व ख़त्म हो चूका था, जो शहर एक समय चंदेल साम्राज्य कि राजधानी हुआ करता था एक महत्व हीन गाँव के रूप में बदल चूका था. इसीलिए आईने – ऐ – अकबरी में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है.
इस तरह से कला के ये समृद्ध मंदिर समूह जाने अनजाने लोगों कि तोड़ फोड़ एवं प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो पतन के कगार पे पहुंच गए. और गुमनामी में कहीं खो गए.
किसने खोज निकला खजुराहो के मंदिरों को? Who Discoverd Khajuraho temples for the world
सन 1818 में Franklin नाम के एक British खोजकर्ता ने अपने यात्रा वृतांत में इन मंदिरों का वर्णन खंडहरों के रूप में किया है. Franklin बताते हैं की मध्य भारत के एक विशाल जंगल में ये मदिर खंडहर के रूप में अवस्थित थे जो लोगों की अनदेखी और प्रकृतिक प्रकोप के शिकार इन मदिरों में जंगली पेड़-पौधे एवं जानवरों का वास हो चूका था.
Franklin के यात्रा वृतांत से प्रेरित हो British Government ने 1838 ईसवी में P. C. Bert नाम के एक इंजिनियर को इस विषय में और भी जानकारी इकठ्ठा करने के उद्देश्य से यहाँ भेजा.
जब वह इंजिनियर खजुराहो आया तो इन कलापूर्ण मंदिरों के स्थापत्य कला एवं मूर्तिशैली से बहुत अधिक प्रभावित हुआ. P.C. Bert ने अपने संक्षिप्त वर्णन में विश्वनाथ, नदी, लक्ष्मण, वराह, एवं मतंगेश्वर आदि मंदिरों का विशेष रूप में उल्लेख किया. उस समय केवल मतंगेश्वर मंदिर में ही पूजा पाठ हुआ करता था. 1852 से 1885 तक लार्ड कनिघम द्वारा पुरातत्व एवं मंदिरो का एक विस्तृत सर्वेक्षण किया गया.
नोट : खजुराहो मंदिरों का विशेष वर्णन हम अगले post में ला रहे हैं.. ….. to be continued
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धन्यवाद.
Jaroor laiyega
Bahut hi achha post hai.bhagwan buddh aur baudh dharm ke bare me vishesh jankari di hai aapne . Mai aapka niyamit pathak hun .Thank you.