Last Updated on July 18, 2023 by Manu Bhai
हिंदी कहानी “बैजू बावरा का बदला”
हिंदी कहानी बैजू बावरा का बदला : सवेरे का समय था, 12 घंटों रात्रि के निरंतर संग्राम के बाद प्रकाश ने अंधकार पर विजय प्राप्त की थ। बाग़ के फूल आनंद मग्न होकर झूम रहे थे, और पक्षी-गन मधुर संगीत में मस्त थे, वृक्षों की शाखाएं सुगंधित पवन से खेल रही थी और पत्ते हर्ष से तालियां बजा रहे थ। प्रकाश के राज्य में सर्वत्र आनंद की वर्षा हो रही थ।
भोर की स्वर्णिम बेला में साधुओं की एक मंडली आगरा नगर में पधारी। वे स्वतंत्र प्रकृति के ईश्वर-भक्त थे और हरिभजन में तल्लीन होकर संसार का परित्याग कर चुके थे, जो संसार इस संसार का भी त्याग कर चुके थे, उन्हें सुर ताल की भला क्या परवाह थी? कोई सुर ऊपर चढ़ता तो कोई गुनगुनाता था। वे अपने राग में मग्न थे कि अचानक सिपाहियों ने उन्हें आ घेरा। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाते, उन्हें हथकड़ियां पहनाकर सिपाही अकबर के दरबार में ले गए। मुगल बादशाह अकबर के प्रसिद्ध गवैये तानसेन ने यह शर्त रखी हुई थी कि जो मनुष्य गायन विद्या में मेरी बराबरी ना कर सके, वे आगरे की सीमा के अंदर ना गाये। और यदि कोई इस नियम को भंग करेगा तो उसे मृत्युदंड का पात्र समझा जाएगा।
बेचारे साधु इस बात से अनभिज्ञ थे। परन्तु अज्ञानता भी एक अपराध है। उन्हें अभियुक्त बनाकर दरबार में पेश किया गया। तानसेन ने गायन विद्या के कुछ प्रश्न किए, साधु उत्तर में एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। अकबर के होंठ हिले और सब के सब साधु तानसेन की दया पर छोड़ दिए जाने की मांग करने लगे। परन्तु उसमें दया का भाव कम थासबके लिए मृत्यु दंड की आज्ञा हुई। केवल एक 10 वर्षीय बालक को छोड़ दिया गया जो उस साधु मंडली का हिस्सा था ।
अबोध बालक रोते हुए आगरा के बाजार से निकलकर जंगल में जाकर अपनी कुटिया में लेट कर तड़पने लगा और दहाड़े मार मार कर रोने लगा – ” बाबा-बाबा तुम कहां चले गए? अब मुझे कौन प्यार करेगा, और कौन मुझे भक्ति का मार्ग दिखाएगा? हे भगवान् मेरे बाबा को क्यों छीन लिया और क्यों मुझे इस असार संसार में अनाथ बना कर छोड़ दिया? अब कौन मेरा पालन पोषण करेगा और घोर संकटों से कौन मेरी रक्षा करेगा? इन्हीं विचारों में डूबा बालक देर तक रोता रहा।
बालक का रुदन सुनकर वहां से गुजरते महात्मा शंकरानंद कुटिया के अंदर आए और कहने लगे बैजू बेटा अशांत मत हो । बैजू घबराकर उठा और महात्मा के चरणों में लिपट गया और रोते हुए बैजू ने कहा “गुरुवर” मेरे साथ अनर्थ हुआ है मुझ पर वज्रपात हुआ है।
शंकरानन्द बोले शांति शांति ….
बैजू रोते हुए बोला – “गुरुवर” तानसेन ने मुझे तबाह कर दिया है, उसने मेरे पिता की हत्या कर दी…
शंकरानंद ने फिर कहा शांति शांति
बैजू ने महात्मा के चरणों में लिपट कर कहा गुरुवर शांति नहीं, अब मेरी प्रतिहिंसा की इच्छा है, प्रतिकार की आकांक्षा है।
शंकरानंद ने व्याकुल बालक को उठाकर हृदय से लगा लिया और कहा मैं तुझे वह अचूक शस्त्र देता हूं, जिसमें तू अपने पिता के मृत्यु का बदला ले सकेगा।
बैजू उछल पड़ा, कहां है वह शस्त्र? कहाँ है … गुरुवर शीघ्रता कीजिए।
शंकरानंद ने कहा, उसके लिए तुम्हें 10 वर्ष तपस्या करनी होगी।
गुस्से में पागल बैजू ने महात्मा से कहा, 10 वर्ष? क्या मैं जीवन भर विपत्तियां उठाने, कष्ट सहने, भक्ति एवं तप करने के लिए ही हूँ।
फिर थोड़ा शांत होकर महात्मा से बोला , “गुरुवर मुझे वह शस्त्र चाहिए जिससे प्रति हिंसा की अग्नि शांत हो सके, क्या 10 वर्ष के बाद मुझे वो मिल पाएगा?
शंकरानंद बोले “अवश्य” मिल पायेगा।
बैजू गुरुवार के चरणों में पुनः झुक गया, ” आप साक्षात ईश्वर हैं। आपका यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा।
अब इस घटना को 12 वर्ष बीत गए। जगत में अनेक परिवर्तन हुए, कई बस्तियों उजड़ गई, कई बस गई, बूढ़े प्रभु धाम चले गए, नए पैदा हो गए, जो तरुण थे, वह श्वेतकेशी हो गए।
Hindi Kahani Baiju Bawra (बैजू बावरा) Ka Badala
बैजू भी तरुण होता गया और गायन विद्या में दिन पर दिन आगे बढ़ता गया। निरंतर कठिन अभयास से उसके स्वरों में जादू आ गया था और तान में आश्चर्यमयी मोहिनी आ गई थी। जब वह गाता था तो पत्थर तक पिघल जाते थे और पक्षी मुग्ध हो जाते थे। १२ वर्ष कैसे बिट गया पता ही नहीं चला और बैजू को महात्मा से सभी विद्याएं मिल चुकी थी।
शंकरानंद ने कहा – मेरे पास जो कुछ था वह तुझे दे डाला। अब मेरे पास तुझे देने के लिए कुछ नहीं है। अब तू पूर्ण गंधर्व हो गया है। लेकिन बिना गुरु दक्षिणा के कोई भी शिक्षा पूर्ण नहीं मानी जाती, तुम्हें भी गुरु दक्षिणा देनी होगी।
बैजू नतमस्तक हो हाथ जोड़कर गुरु से बोला ” गुरुवर! आपका उपकार जीवन भर न उतरेगा। आज्ञा करें….
शंकरानंद ने कहा ” तो प्रतिज्ञा करो…..
बैजू ने बिना सोचे विचारे कह दिया कि….. प्रतिज्ञा करता हूं कि…..
शंकरा नंद ने वाक्य पूरा किया, ” इस राग-विद्या से किसी को हानि नहीं पहुंचाऊंगा।
यह सुनते ही बैजू का रक्त सूख गया पैर लड़खड़ाने लगे, 12 वर्ष के कठिन परिश्रम पर पानी फिर गया।
बदले के लिए छुरी हाथ में आई तो गुरु ने प्रतिज्ञा लेकर कुंद कर दिया। बैजू ने होंठ काटे, दांत पीसे और खून का घूंट पीकर रह गया।
वर्षो बिट गए , इतने वर्षों में आगरा की सीमा में राग अलापते हुए प्रवेश करने की हिम्मत किसी की ना हुई। आज एक सुंदर नवयुवक आगरे के बाजार में गाता हुआ जा रहा था। दुकानदारों और राहगीरों ने समझा कि मृत्यु इसके सिर पर मंडरा रही है। उसमें से कुछ ने सोचा कि उसे तानसेन की शर्त की सूचना दे दें। परंतु निकट आते ही बैजू के राग से मुग्ध होकर अपने आप को भूल गए। यह समाचार नगर में दबा नल की तरह फैल गया।
सिपाही हथकड़ियां लेकर नवयुवक की ओर आए, परंतु पास आते ही रंग पलट गया। नवयुवक के मुख्य मंडल से तेज की रश्मिया फूट-फूटकर निकल रही थी। आश्चर्य से उसके मुख की ओर देखने लगी, जहां सरस्वती का वास था और संगीत की मधुर ध्वनि यों की धारा बह रही थी।
नवयुवक गाने में मस्त था और सुनने वाले भी मस्त थे। गाते-गाते नवयुवक चलता जा रहा था और श्रोताओं का समुदाय पीछे-पीछे आ रहा था। मुग्ध जन-समुदाय चलता जा रहा था, परंतु किसी को पता नहीं था कि किधर जा रहे हैं? जब एका-एक गाना बंद हुआ तो जादू का असर टूटा। सब लोगों ने देखा कि वे सब तानसेन के महल के आगे खड़े हैं। उन्होंने दुख और पश्चाताप से हाथ मॉल लिए।
हाय रे…. यह कहां आ गए? नवयुवक स्वयं मृत्यु के द्वार पर आ पहुंचा है।
तानसेन बाहर आया, अपार भीड़ को देख विस्मित हुआ और नवयुवक से बोला, हां आज शायद तुम्हारे सिर पर मृत्यु सवार हो गई है?
नवयुवक मुस्कुराया और बोला जी हां, क्योंकि आपके साथ गायन-विद्या पर चर्चा करने की मेरी तीक्ष्ण अभिलाषा हो रही है। तानसेन ने लापरवाही से कहा, विलंब क्यों करते हो? अपनी इच्छा पूरी करो।
अभी सिपाहियों का मोह टूटा। उन्हें हथकड़ियों का ध्यान आया, उन्होंने आगे बढ़ कर युवक को हथकड़ियां पहना दी। उधर लोगों के श्रद्धा के भाव पकड़े जाने के भय से उड़ गए। लोग इधर-उधर भागने लगे। कोड़े बरसने लगे और लोगों के तितर-बितर हो जाने के बाद नवयुवक को दरबार की ओर ले गए। दरबार की ओर से शर्ते सुनाई गई और बताया गया कि कल प्रातः काल नगर के बाहर वन में तुम दोनों का गायन युद्ध होगा। यदि तुम हार गए तो तुम्हें मृत्यु दंड देने का अधिकार तानसेन को होगा और यदि तुमने उसे पराजित कर दिया तो उसका जीवन तुम्हारे हाथ में होगा।
वह नवयुवक कोई और नहीं बैजू बावरा था। उसने शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली थी। इसी दिन के लिए उसने 12 वर्ष तक कठिन तपस्या की थी।
रवि की पहली किरण ने आगरा के जनता को नगर के बाहर का मार्ग दिखा दिया। बैजू के प्रार्थना पर सर्वसाधारण को भी उसके जीवन और मृत्यु का कौतुक देखने की इजाजत दे दी गई थी। बैजू की विद्वता की धाक पूरे राज्य में जम चुकी थी। जो व्यक्ति कभी शाही सवारी या बड़े-बड़े त्योहारों पर भी बाहर नहीं निकलते थे, वह भी आज नई-नई पागड़ियाँ घोट घोट कर बांध रहे थे।
निर्धारित समय पर बादशाह अकबर सिंहासन पर बैठ गए। उनके समक्ष तानसेन और बैजू बावरा बैठे थे। अकबर ने प्रतियोगिता को आरंभ करने का आदेश दिया। सर्वप्रथम तानसेन ने संगीत विद्या के संबंध में बैजू बावरा से कुछ प्रश्न पूछे, जिनका बैजू बावरा ने उचित उत्तर दिया। सही उत्तर सुनकर लोगों ने हर्ष से तालियां बजाई। उनके मुख से जय हो जय हो बलिहारी की ध्वनियाँ स्वतः ही निकलने लगी।
इसके पश्चात बैजू बावरा ने सितार पकड़ा और उसके तारों को झंकृत किया तो जनता ब्रह्मानंद में डूब गई। वृक्षों के पत्ते निश्चल हो गए, वायु रुक गई, सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो झूमने लगे। बैजू बावरा की उंगलियां सितार के तारों पर दौड़ रही थी। लोगों ने आश्चर्य से देखा कि जंगल से हिरन छलांगे मारते हुए आए और बैजू बावरा के पास खड़े हो गए। बैजू बावरा तल्लीन होकर सितार बजाते रहे, बजाते ही रहे।
हिरन संगीत में मस्त थे। बैजू बावरा ने सितार रख दिया और अपने गले से फूल मालाएं उतारकर उन हिरनों को पहना दी। फूलों के स्पर्श से हिरनों की सुधि लौटी और वे चौकड़ी मारते हुए झाड़ियों में छिप गए।
तभी बैजू ने कहा, ” तानसेन! उन फूल मालाओं को वापस यहां मंगवाइये, तब मैं तब मैं आपको संगीत विद्या में पूर्ण निपुण मानूंगा। “
तानसेन भी संगीत विद्या में सिद्धहस्त थे। उन्होंने प्रवीणता के साथ सितार बजाया। इतना अच्छा सितार उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं बजाया था। सितार के साथ वह स्वयं सितार बन गए और पसीने में तर हो गए। बजाते बजाते बहुत समय बीत गया। उनकी उंगलियां दुखने लगी। बहुत चेष्टा करने पर भी जब कोई हिरन नहीं आया, तब तानसेन की आंखों के सामने मृत्यु नाचने लगी। पसीना पसीना हो गया और लज्जा से उसका मुख मंडल तमतमा उठा।
अंत में खिसिया कर बोले, वे हिरन तो अकस्मात इधर आ निकले थे, राग का प्रभाव थोड़े ही था। साहस है तो दोबारा बुलाओ।
बैजू बावरा ने मुस्कुरा कर कहा, ” बहुत अच्छा।”
बैजू ने सितार उठाया और एक बार फिर संगीत लहरी वायुमंडल में लहराने लगी और सुनने वाले फिर से उन संगीत लहरों में डूबने लगे, वे हिरन, बैजू बावरा के पास वापस फिर आ गए, यह सब वही हिरने थीं जिनकी ग्रीवावों में बैजू ने फूल मालाएं डाली थी और जो बैजू बावरा के की सुरीली ध्वनि के आकर्षण में खींचे चले आए थे। बैजू बावरा ने जैसे ही उनकी ग्रीवा से मालाएं उतारी, हिरण कूदते-फानते हुए पुनः लुप्त हो गए। ये सब देख सभी आश्चर्यचकित थे।
अकबर को तानसेन से अगाध प्रेम था। जब उसकी मृत्यु निकट देखी तो अकबर का कंठ भर आय। लेकिन वह कर भी क्या सकते थे? तानसेन शर्त हार गए थे। विवश होकर उन्होंने संक्षेप में निर्णय सुना दिया, बैजू बावरा की विजय और तानसेन की पराजय।
तानसेन लड़खड़ाते हुए बैजू बावरा की ओर बढ़े। जिसने किसी को मृत्यु के घाट उतारते समय दया नहीं की थी, वह दया की भीख मांगने लगे। तब बैजू ने कहा, ” जहांपनाह! मेरी किसी की प्राण लेने की इच्छा नहीं है। आप इस निष्ठुर नियम को हटा दीजिए कि जो आगरा की सीमाओं के अंदर गाएगा, तानसेन से हार जाने पर उसे मृत्युदंड दिया जाएगा।
अकबर ने अधीरता से कहा, यह नियम आज अभी, और इसी क्षण समाप्त करता हूँ।
तानसेन बैजू बावरा के चरणों में गिर पड़े और दीनता से कहने लगे मैं यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा ।
बैजू बावरा ने उत्तर दिया, यह उपकार नहीं प्रतिकार है। 12 वर्ष पहले तुमने मेरे पिता के प्राण लिए थे, यह उसी का बदला है।
उम्मीद करते हैं की आपको यह कहानी बैजू बावरा का बदला Baiju Babara ka badla आपको पसंद आया होगा । कृपया कमेंट के माध्यम से हमें अपना विचार एवं अपनी सुझाव अवश्य बताएं ।
धन्यवाद ।
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अच्छा लेख। आपका दिन शुभ हो।