सियार और ढोल की कहानी- पंचतंत्र कहानी (मित्रभेद) | Panchatantra Story: The Jackal And The Drum Story In Hindi

Last Updated on July 20, 2024 by Manu Bhai

सियार और ढोल की कहानी – पंचतंत्र की कहानी (The Jackal And The Drum Story In Hindi) साझा करेंगे। सियार और ढोल की कहानी पंचतंत्र के तंत्र मित्रभेद से ली गई है। कथा के अनुसार एक सियार को जंगल में एक ढोल दिखाई दिया, जिसे देखकर उसने समझ लिया कि यह कोई जीव है। उसके बाद क्या होगा यह जानने के लिए पढ़ें (The Foolish Jackal Story In Hindi):

सियार और ढोल: पंचतंत्र की एक महत्वपूर्ण कहानी

सियार और ढोल की कहानी पंचतंत्र Panchatantra Story

पंचतंत्र की कहानियाँ हमें जीवन के मूल सिद्धांतों को सिखाती हैं और हमें मनोरंजन का अद्भुत स्रोत प्रदान करती हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कहानी है – “सियार और ढोल”।

एक बार जंगल के निकट दो राजाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। एक राजा जीतता है, और दूसरे राजा को हार का सामना करना पड़ता है। दोनों सेनाएँ अपने-अपने नगरों को लौट गईं। केवल एक ढोल वही पर छूट गया। युद्ध में ढोल इसलिए ले जाते थे ताकि युद्ध में ढोल बजाकर सैनिको का उत्साह बढ़ाने वाले भाट और चारण रात में सैनिको को बहादुरी की कहानियाँ सुनाते थे।

युद्ध के बाद एक दिन जंगल में तूफ़ान आ गया। तूफ़ान के ज़ोर के कारण ढोल इधर से उधर लुढ़कता रहा और एक बड़े से सूखे पेड़ से टकराकर रुक गया। पेड़ की सूखी शाखाएँ – टहनिया ढोल से चिपक जाती हैं और जब भी तेज हवा चलती है तो वह ढोल टहनियों से टकराकर “दादम दमदम” की आवाज निकालती थी।

उसी दिन एक भूखा सियार खाने की तलाश में भटकते – भटकते जंगल के दूसरे छोर तक चला गया। तभी वहां अचानक उसे उस ढोल की तेज आवाज सुनाई पड़ती है, सुनसान खाली जंगल में आवाज गूंज गई और सियार डर गया। वह सोचने लगा कि यह कैसा जानवर है जो इतनी तेज आवाज निकाल सकता है “धमाढम”। सियार ने ढोल के पास जाकर ध्यान से देखा और सोचा कि क्या यह जीव उड़ने वाला है या चारों तरफ दौड़ने वाला है।

सियार का अभी भी उस ढोल से डरा हुआ था, और एक झाड़ी के पीछे छिप कर उस ढोल पर नजर रखने लगा। इसी समय एक गिलहरी पेड़ से कूदकर ढोल पर कूद जाती है जिस कारन हल्की सी धम्म की आवाज भी हुई पर वह गिलहरी बेफिकर आपने साथ लाई दाना को ढोल पर बैठे-बैठे चबाती रहीं।

आप पढ़ रहे हैं सियार और ढोल की कहानी

सियार ने देखा कि ढोल ने गिलहरी को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया, तो मन ही मन बोलै “ओह! तो ये हिंसक प्राणी नहीं हैं। मुझे भी डरना नहीं चाहिए।”

सियार धीरे-धीरे उस ढोल के नजदीक पहुंचा और उसे सूंघने लगा। नजदीक जा ठीक से निरीक्षण करने और सूँघने पर उसने पाया कि ढोल के न तो पैर थे और न ही सिर।

“अच्छा, तो अब मैं समझ गया, वह भयानक और अजीब जीव इस खोल के अंदर है, यह तो सिर्फ उसका बाहरी खोल है। ‘ढम’ की आवाज से ही पता चल रहा है कि वह जिव इसके भीतर ही रहता है। निश्चय ही वह जीव मोटा-तगड़ा और चर्बी से भरा हुआ होगा, तभी तो इतनी जोर से ढम… ढम… की आवाज निकाल रहा है। इसे खाकर मैं कई दिनों तक अपनी भूख मिटा सकता हूं।”

 सियार और ढोल की कहानी

इसके बाद सियार खुशी-खुशी अपनी मांद में चला गया और अपनी पत्नी सियारी से बोला, “अरे ओ सियारी! आज मैं एक मोटे-ताजे शिकार का पता लगा के आया हूं, तुम बस दावत खाने के लिए तैयार हो जाओ।”

यह सुनकर सियारी के मुंह भी में पानी आ गया और उसने अपने पति सियार से पूछा, “फिर तुम उसका शिकार करके क्यों नहीं लाए?”

सियार ने गुस्सा करते हुए सियारी को जवाब दिया कि “अरी मैं तुम्हारी तरह मूर्ख नहीं हूं। वह जानवर एक बड़े से खोल में छिपा बैठा है। और वह खोल कुछ ऐसा है कि उसके दोनों ओर सुखी खाल के बने दरवाजे भी हैं। अगर मैं एक तरफ से उसका शिकार करने की कोशिश करूं, तो क्या वह दूसरी तरफ से भाग नहीं जाएगा?”

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फिर सियार और सियारी दोनों ने मिलकर उस जानवर के शिकार की योजना बनाई और रात होने का इन्तजार किया। जैसे ही चांद निकला दोनों उस ढोल की ओर चल पड़े।

वे दोनों ढोल से कुछ ही दूरी पर थे कि अचानक हवा का तेज झोंका आया और जैसे ही उस पेड़ की टहनियां ढोल से टकराईं चारों ओर ढम-ढम की आवाज गूंज उठी।

सियार ने धीरे से सियारी के कान में कहा, “तुमने अभी उसकी आवाज सुनी? जरा सोचो कि अगर इसकी आवाज इतनी तेज है, तो यह खुद कितना मोटा और ताजा होगा।”

दोनों ने ढोल को घेर कर उसे सीधा कर दिया, ढोल के एक ओर सियार और दूसरी ओर सियारी बैठ गई और फिर दोनों ने दांतों से उसकी चमड़ी फाड़नी शुरू कर दी। जैसे ही खाल फटने लगी सियार ने सियारी से कहा, “सावधान रहना! हमें एक ही समय में दोनों तरफ हाथ डालकर शिकार को पकड़ना है।

फिर दोनों ने मिलकर ढोल के अंदर हाथ डाला और अंदर शिकार को टटोलने लगे। लेकिन ढोल के अंदर कुछ भी नहीं था, दोनों को सिर्फ एक-दूसरे के हाथ ही पकड़ में आए। दोनों ने एक साथ चिल्लाकर कहा, “अरे, यहां तो कोई नहीं है” फिर दोनों अपना सिर पीटते रह गये।

पंचतंत्र की कहानी – बन्दर और लकड़ी का खूंटा / Panchtantra Story in Hindi – The Monkey and The Wedge

कहानी का भाव:

जैसे ढोल बाहर से बहुत बड़ा और भीतर से खोखला था, उसी प्रकार जो लोग अपने मुंह से अपनी बढ़-चढ़कर बड़ाई करते हैं और अपनी डींग हांकते हैं, वे वास्तव में ढोल की तरह खोखले होते हैं। इसलिए किसी के बाहरी आवरण और रूप-रंग से प्रभावित नहीं होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति या वस्तु का वास्तविक ज्ञान उसे अच्छी तरह से परखने के बाद ही पता चलता है।

दोस्तों हमें उम्मीद है कि आपको हमारे द्वारा साझा की गई यह पंचतंत्र की कहानी, मित्रभेद से – सियार और ढोल (The Jackal and the Drum Story In Hindi) अच्छी लगी होगी। यदि कहानी आपको पसंद आई तो इसे अपने सोशल मीडिया पर शेयर अवश्य करें। साथ ही आपको यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। आपका दिन शुभ हो। जय हिन्द

क्रम संख्यातंत्र विवरणकहानी का नाम
1कथामुख-पंचतंत्रकथामुख-पंचतंत्र का प्रारम्भ
2मित्र भेदबन्दर और लकड़ी का खूंटा
3मित्र भेदसियार और ढोल
4मित्र भेदपंचतंत्र – व्यापारी का पतन और उदय
5मित्र भेदपंचतंत्र -दुष्ट सर्प और कौवे
6मित्र भेदपंचतंत्र – मूर्ख साधू और ठग
7मित्र भेदपंचतंत्र – लड़ते बकरे और सियार
8मित्र भेदपंचतंत्र – बगुला भगत और केकड़ा
9मित्र भेदपंचतंत्र – चतुर खरगोश और शेर
10मित्र भेदपंचतंत्र – खटमल और बेचारी जूं
11मित्र भेदपंचतंत्र- रंगा सियार
12मित्र भेदपंचतंत्र – शेर, ऊंट, सियार और कौवा
13मित्र भेदपंचतंत्र – टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान
14मित्र भेदपंचतंत्र – मूर्ख बातूनी कछुआ
15मित्र भेदपंचतंत्र – तीन मछलियां
16मित्र भेदपंचतंत्र -हाथी और गौरैया
17मित्र भेदपंचतंत्र -सिंह और सियार
18मित्र भेदपंचतंत्र – चिड़िया और बन्दर
19मित्र भेदपंचतंत्र – मित्रद्रोह का फल
20मित्र भेदपंचतंत्र- मूर्ख बगुला और नेवला
21मित्र भेदपंचतंत्र – जैसे को तैसा
22मित्र भेदपंचतंत्र – मुर्ख मित्र

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