स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं : Poems On Independence Day In Hindi

Last Updated on July 21, 2024 by Manu Bhai

स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं: भारतीय नागरिकों के हृदय में देश प्रेम की उत्कृष्ट भावना को साकार रूप देने के लिए कवियों और उनकी कविताओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। देश प्रेमी और हिंदी प्रेमी आज भी स्वतंत्रता दिवस पर कविता पढ़ने, सुनने और उसे साझा करने में रुचि रखते हैं। 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस, के अवसर पर स्कूल, कॉलेज, इंस्टिट्यूट, ऑफिस, और अन्य स्थानों पर देशभक्ति कविताओं का पाठ करने से नई ऊर्जा और उत्साह की लहर उत्पन्न होती है। इस विशेष दिन पर, हम आपके लिए स्वतंत्रता दिवस पर हिंदी में कुछ सुन्दर कविताएँ लेकर आये हैं, जो आपकी भावनाओं को नवीनतम रूप से छूने का प्रयास करती हैं।

स्वतंत्रता एक ऐसी पवित्र भावना है, जिसका उद्देश्य समाज को सशक्त करके लोकहित में सहायक बनाना होता है। स्वतंत्रता दिवस वह अद्वितीय पर्व है, जिस दिन भारत ने क्रूर ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त की थी। इस पोस्ट में, आपको swatantrata diwas par kavita पढ़ने को मिलेगी, क्योंकि Independence Day Poem in Hindi का मकसद उन वीर बलिदानियों की कहानियों को सुनाने और स्वीकार करने में है, जिनके कारण आपको आज़ादी के सच्चे मतलब पता चलता है। इसके लिए, आपको हमारा यह ब्लॉग पोस्ट को अंत तक पढ़ना चाहिए।

आज़ादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav)

स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं : Poems On Independence Day In Hindi

स्वतंत्रता दिवस पर बाल कविता

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,
बोलें भारत माता की जय,
स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
आओ! प्यारे वीरो, आओ।
देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

– विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (झंडा गीत) / श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’

कविता: भारत


“अनेकों उतार-चढ़ाव देख कर भी
अनेकों आक्रमण स्वयं पर झेल कर भी
चट्टान सा खड़ा है, एक गुरु की भांति
माँ की ममता है इसमें, यह अविरल है नदियों की भांति

असंख्य साधकों की तपस्थली है भारत
असंख्य वीरों की जननी है भारत
बलिदानों से सिंचित यहाँ की माटी है
अतुल्नीय ज्ञान की धरती है भारत
अकल्पनीय है भारत के बिना विश्व की उन्नति
अद्वित्य है भारत की सम्पन्नता और समृद्धि
भारत के कण-कण में माँ की ममता है
भारत की स्वतंत्र हवाओं में पिता सा दुलार है

शरणागतों की सदा ही रक्षा करती
वीरता का पर्याय अपनी मातृभूमि भारत है
निज ज्ञान से विश्व के अज्ञान का नाश करती
बलिदानों की पुण्यभूमि अपना भारत है…”

-मयंक विश्नोई

स्वतंत्रता दिवस पर वीर रस की कविता

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है,
एक जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है।
ये वंदन की धरती है, अभिनंदन की धरती है।
ये अर्पण की भूमि है, ये तर्पण की भूमि है।
इसकी नदी-नदी हमारे लिए गंगा है,
इसका कंकड़-कंकड़ हमारे लिए शंकर है।
हम जिएंगे तो इस भारत के लिए
और मरेंगे तो इस भारत के लिए।
और मरने के बाद भी,
गंगाजल में बहती हुई हमारी अस्थियों को
कोई कान लगाकर सुनेगा,
तो एक ही आवाज़ आएगी,
भारत माता की जय।

– भारत जमीन का टुकड़ा नहीं / अटल बिहारी वाजपेयी

Jhansi Ki Rani kavita झाँसी की रानी कविता का सारांश

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता:पंद्रह अगस्त की पुकार

पंद्रह अगस्त का दिन कहता: आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है॥

जिनकी लाशों पर पग धर कर आज़ादी भारत में आई,
वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई॥

कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आँधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥

हिंदू के नाते उनका दु:ख सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥

इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है॥

भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं॥

लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया॥

बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥

दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे॥

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥

– पंद्रह अगस्त की पुकार / अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता- “नादान पड़ोसी को चेतावनी ” Atal Bihari Vajpeye Kavita

स्वतंत्रता दिवस पर कविता

“विद्या के मंदिर से एक ही शंखनाद होता है
हर बुराई के अंत के पीछे एक प्रकाश होता है
स्वतंत्रता दिवस प्रतीक है सुशासन और सम्मान का
स्वतंत्रता दिवस प्रतीक है सच्चे लोक कल्याण का
इस स्वतंत्रता की ऋतु का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है
पुरखों के बलिदान से मिली ये स्वतंत्रता हमारी जिम्मेदारी है
इस जिम्मेदारी को निभाने वाले नन्हें सिपाही हैं
भारत माँ के लाल हैं हम, हम सद्कर्मों के सिपाही हैं…”
-मयंक विश्नोई

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा / इक़बाल

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा

– सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा / इक़बाल

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,
बोलें भारत माता की जय,
स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
आओ! प्यारे वीरो, आओ।
देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

– विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (झंडा गीत) / श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’

आजादी पर हिंदी कविता

आज देश मे नई भोर है
नई भोर का समारोह है
आज सिन्धु-गर्वित प्राणों में
उमड़ रहा उत्साह
मचल रहा है
नए सृजन के लक्ष्य बिन्दु पर
कवि के मुक्त छन्द-चरणों का
एक नया इतिहास ।

आज देश ने ली स्वंत्रतता
आज गगन मुस्काया ।
आज हिमालय हिला
पवन पुलके
सुनहली प्यारी-प्यारी धूप ।
आज देश की मिट्टी में बल
उर्वर साहस
आज देश के कण-कण ने ली
स्वतंत्रता की साँस ।

युग-युग के अवढर योगी की
टूटी आज समाधि
आज देश की आत्मा बदली
न्याय नीति संस्कृति शासन पर
चल न सकेंगे
अब धूमायित-कलुषित पर संकेत
एकत्रित अब कर न सकेंगे ,श्रम का सोना
अर्थ व्यूह रचना के स्वामी
पूंजी के रथ जोत ।

आज यूनियन जैक नहीं
अब है राष्ट्रीय निशान
लहराओ फहराओ इसको
पूजो-पूजो-पूजो इसको
यह बलिदानों की श्रद्धा है
यह अपमानों का प्रतिशोध
कोटि-कोटि सृष्टा बन्धुओं को
यह सुहाग सिन्दूर ।

यह स्वतंत्रता के संगर का पहला अस्त्र अमोध
आज देश जय-घोष कर रहा
महलों से बाँसों की छत पर नई चेतना आई
स्वतंत्रता के प्रथम सूर्य का है अभिनंदन-वन्दन
अब न देश फूटी आँखों भी देखेगा जन-क्रन्दन
अब न भूख का ज्वार-ज्वार में लाशें
लाशों में स्वर्ण के निर्मित होंगे गेह
अब ना देश में चल पाएगा लोहू का व्यापार
आज शहीदों की मज़ार पर
स्वतंत्रता के फूल चढ़ाकर कौल करो
दास-देश के कौतुक –करकट को बुहार कर
कौल करो ।

आज देश में नई भोर है
नई भोर का समारोह है ।

– 15 अगस्त 1947 / शील

पंद्रह अगस्त पर – वीरों पर कविता

सरहद पे गोली खाके जब टूट जाए मेरी सांस
मुझे भेज देना यारों मेरी बूढ़ी मां के पास

बड़ा शौक था उसे मैं घोड़ी चढूं
धमाधम ढोल बजे
तो ऐसा ही करना 
मुझे घोड़ी पे लेके जाना
ढोलकें बजाना 
पूरे गांव में घुमाना
और मां से कहना 
बेटा दूल्हा बनकर आया है
बहू नहीं ला पाया तो क्या
बारात तो लाया है

मेरे बाबूजी, पुराने फ़ौजी, बड़े मनमौजी
कहते थे- बच्चे, तिरंगा लहरा के आना
या तिरंगे में लिपट के आना
कह देना उनसे, उनकी बात रख ली
दुश्मन को पीठ नहीं दिखाई
आख़िरी गोली भी सीने पे खाई

मेरा छोटा भाई, उससे कहना 
क्या मेरा वादा निभाएगा
मैं सरहदों से बोल कर आया था
कि एक बेटा जाएगा तो दूसरा आएगा

मेरी छोटी बहना, उससे कहना
मुझे याद था उसका तोहफ़ा
लेकिन अजीब इत्तेफ़ाक़ हो गया
भाई राखी से पहले ही राख हो गया

वो कुएं के सामने वाला घर
दो घड़ी के लिए वहां ज़रूर ठहरना
वहीं तो रहती है वो
जिसके साथ जीने मरने का वादा किया था
उससे कहना 
भारत मां का साथ निभाने में उसका साथ छूट गया
एक वादे के लिए दूसरा वादा टूट गया

बस एक आख़िरी गुज़ारिश 
आख़िरी ख़्वाहिश
मेरी मौत का मातम न करना
मैने ख़ुद ये शहादत चाही है
मैं जीता हूं मरने के लिए
मेरा नाम सिपाही है

– मनोज मुंतशिर

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