Last Updated on August 31, 2023 by Manu Bhai
रानी कमलापति रेलवे स्टेशन भोपाल : जिनके नाम से भारत के हाईटेक रेलवे स्टेशन भोपाल का नाम पड़ा. यदि यही नाम रानी कामलापति आपने भी पहली बार सूना है तो आप भी उस षड़यंत्र के शिकार हैं….!
रानी कमलापति रेलवे स्टेशन | कौन थी रानी कामलापति जिनके नाम पे भोपाल रेलवे स्टेशन का नाम पड़ा।
मध्य प्रदेश के भोपाल में बने भारत के सुपर हाईटेक रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन हो गया है, पहले इस स्टेशन का नाम हबीबगंज रेलवे स्टेशन हुआ करता था। आज यह रेलवे स्टेशन किसी भी इंटरनेशनल एयरपोर्ट को भी मात देता है। लेकिन आज हम स्टेशन की भव्यता की नहीं बल्कि उसकी दिव्यता की बात करेंगे, और दिव्यता इस रेल्वे स्टेशन के नाम में है।
जब भोपाल के इस स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखे जाने का समाचार लोगों ने सुना तो शेष भारत तो छोड़िये, मध्यप्रदेश भी जाने दीजिये, भोपाल के नागरिकों तक को भी आश्चर्य हुआ कि ये रानी कमलापति कौन थी? भोपाल को तो नवाबों ने बसाया है, भोपाल में किसी हिन्दू राजा का नाम अगर सुना वो राजा भोज का सुना, तो फिर ये रानी कमलापति कहां से आ गई ?
और रानी कमलापति कौन है, यदि स्टेशन के नामान्तरण के बाद यह प्रश्न आपके भी मन में उठा हो, तो समझिये पिछले एक शतक के षड्यंत्र के परिणाम आंशिकरूप से आपके मस्तिष्क पर भी हुए हैं। वे हमें हमारी जड़ों से काटना चाहते थे और कुछ भी कहो वे कुछ हद तक सफल तो हुए हैं।
खैर, रानी कमलापति को मध्यप्रदेश की पद्मावती भी कह सकते हैं। जैसे पद्मावती ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया था, ठीक वैसे ही रानी कमलापति ने भी जलसमाधि ली थी।
सोलहवीं सदी में समूचे भोपाल क्षेत्र पर हिन्दू गोंड राजाओं का ही शासन था। कमलापति गोंड राजा निजामशाह की पत्नी थीं। भोपाल के पास गिन्नौरगढ़ से राज्य का संचालन होता था। फिर गद्दी का मोह कुटुंबियों में आया ।राजा निजामशाह के भतीजे आलमशाह, जिसका बाड़ी पर शासन था, के मन में गिन्नौरगढ़ को हड़पने का विचार आया। लड़ तो सकता नहीं था, तो घटिया हरकत की, निजामशाह को खाने पर बुलाया ,खाने में जहर मिलाया और राजा को परलोक पहुंचाया। रानी अपने बेटे नवलशाह की रक्षा के लिए बेटे को लेकर गिन्नौरगढ़ से भोपाल आ गई। भोपाल के छोटे तालाब के पास रानी का महल था। रानी ने अफगानिस्तान से आये हुए मोहम्मद खान से अपने पति के हत्यारे आलमशाह को सबक सिखाने की बात की, मोहम्मद खान एक लाख रुपये के बदले काम करने को तैयार हुआ और उसने आलमशाह को मौत के घाट उतार दिया। पर रानी के पास उस समय धन की पूरी व्यवस्था न हो पाने के कारण रानी ने भोपाल का एक हिस्सा मोहम्मद खान को दे दिया।
किन्तु कुछ समय बाद मोहम्मद खान की भी स्वार्थी और विश्वासघाती वृत्ति बड़ी होकर सामने आ गई। उसकी नीयत पूरे भोपाल पर कब्जा करने की थी और इससे भी बुरी बात यह थी कि रानी पर भी उसकी कुदृष्टि थी ।आखिरकार रानी के चिरंजीव नवलशाह और मोहम्मद खान के बीच युद्ध हुआ ,युद्ध अत्यंत भयानक था। इतना कि जिस घाटी पर युद्ध हुआ वो खून से लाल हो गई, भोपाल में आज भी उसे लालघाटी कहते हैं। रानी माता की मानरक्षा के लिए अन्य सैनिकों के साथ नवलशाह का भी बलिदान हो गया। अंत में केवल दो लोग बचे, उन्होंने लालघाटी से धुँआ छोड़ा, महल में बैठी रानी इसका अर्थ समझ गईं। उन्होंने अपने निजी सेवकों को तालाब की नहर का रास्ता अपने महल की ओर मोड़ने के आदेश दिए। रानी अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ महल के सबसे नीचे वाले तल में जाकर बैठ गईं और अपने शील की रक्षा के लिए जल-समाधि ले ली.
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इसे जल-समाधि की जगह जल-जौहर भी कह सकते हैं। जैसे रानी पद्मिनी के साथ अगणित महिलाओं ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया था, वैसा ही रानी कमलापति ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए किया। आज भी रानी के महल की पांच मंजिलें पानी में डूबी हुई हैं, केवल दो मंजिलें ही पानी से बाहर हैं , पर हाय रे दुर्भाग्य! कौन बताए बच्चों को रानी का सतीत्व और साहस ,हम तो तालाब घूमने आये और फोटो खिंचाकर चल दिए। क्यों, कैसे, कब, किसने यह महल बनवाया था, कभी जानना ही नहीं चाहा । लडकियां तालाब के साथ ,महल के साथ सेल्फी लेती हैं, हैशटेग नेचरलवर के साथ स्टोरी डालती हैं, किन्तु उस भारत माँ की सपूत रानी का इतिहास नहीं जानना चाहतीं।
ऐसी न जाने कितनी कमलापतियों का इतिहास उस महल की तरह ही अँधेरे में डूबा हुआ है। उन पर अब प्रकाश जाने लगा है और दुनिया उससे आलोकित होने लगी है। वरना देश में छः से ज्यादा महापुरुष ही नहीं हुए, ऐसा लगने लगा था, हर नगर में, हर गांव में उनके ही नाम के संस्थान, चौराहे सब हुआ करते थे। किन्तु अब हमारे स्थानीय महापुरुषों के नाम पर विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन का नाम रखा जाने लगा है यह सच में सत्य के उद्घाटन का समय हैं.
किन्तु हम सबको अपने व्यवहार में इन नामो को लाना पड़ेगा ,अन्यथा आज भी कई लोग प्रयागराज को इलाहाबाद ही कहते हैं ,नर्मदापुरम को होशंगाबाद और दीनदयाल रेलवे स्टेशन को मुगलसराय स्टेशन अब सरकारे तो अपने हिस्से का कार्य कर रहीं हैं ,लेकिन हम सबको भी अपने नित्य व्यवहार में इन शब्दों को लाकर अपने हिस्से का कार्य करना पड़ेगा, तभी आक्रान्ताओं के कलंक पूरी तरह मिटेंगे और सत्य ,सूर्य के समान उद्घाटित होकर विश्व को आलोकित करेगा ।
इस रूट पर अब चलेगी वंदे भारत ट्रेन, जानें किराया से लेकर सबकुछ Vande Bharat Express Train Route
मध्य प्रदेश के भोपाल वासियों को बड़ी सौगात मिलने वाली है. पीएम नरेंद्र मोदी एक अप्रैल को भोपाल से वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे. भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन से सुबह 5:55 बजे चलकर दोपहर 1:45 बजे नई दिल्ली पहुंचेगी और वहां से दोपहर 2:45 बजे चलकर रात में 10:35 बजे रानी कमलापति स्टेशन पहुंचेगी. रानी कमलापति और दिल्ली के बीच में सिर्फ आगरा स्टेशन पर 5 मिनट का स्टॉपेज रखा गया है. यह 708 किलोमीटर का सफर मात्र 7.45 घंटे में पूरा करेगी. (Vande Bharat Express Train)
वंदे भारत एक्सप्रेस में कुल 16 कोच हैं, जिनमें से 14 एसी चेयर कार और दो एग्जीक्यूटिव क्लास के कोच हैं. पूरी ट्रेन में 1128 सीटें यात्रियों के लिए उपलब्ध रहेंगी. जानकारी के अनुसार वंदे भारत भोपाल से दिल्ली के बीच एसी चेयर कार का किराया ₹2000 से कुछ अधिक हो सकता है. एग्जीक्यूटिव क्लास का किराया तकरीबन ₹3300 रुपये तक का हो सकता है. हालांकि, अभी किराया निर्धारिक कर बताया जाएगा. (Vande Bharat Express Train)
शताब्दी एक्सप्रेस दिल्ली पहुंचने में 8 घंटे 15 मिनट का समय लेती है. अगर वंदे भारत एक्सप्रेस की बात करें तो यह अधिकतम 7 घंटे 45 मिनट में दिल्ली पहुंचा देगी. वंदे भारत एक्सप्रेस चलने से भोपाल के लोगों के लिए दिल्ली का सफर काफी आसाना हो जाएगा. वंदे भारत ट्रेन अब 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी. (Vande Bharat Express Train)
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