Last Updated on September 6, 2023 by Manu Bhai
Atal Bihari Vajpeye Ki Kavita: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और ना हीं उनकी कवितायें। अटल जी अब हमारे बीच नहीं हैं। 16 अगस्त 2018 की शाम 5 बजकर 5 मिनट पर उनका निधन हो गया। अटल वाजपेयी जी जितने अच्छे राजनेता और वक्ता रहे हैं, उससे कहीं बेहतरीन कवि भी थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी सिर्फ एक मंझे हुए राजनेता और प्रखर वक्ता ही नहीं बल्कि एक प्रसिद्ध कवि भी थे। वाजपेयी जी ने 1996 में पहली बार भारत के केवल 13 दिनों के लिए प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया था, दूसरी बार उन्होंने 1998 से 1999 तक 13 महीने तक सेवा की और प्रधान मंत्री के रूप में उनका अंतिम कार्यकाल 1999 से 2004 तक पूर्ण कार्यकाल था।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अटल जी के पिता का नाम श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी था एवं उनकी मां कृष्णा देवी थीं। उनके दादा का नाम श्याम लाल वाजपेयी था, वे उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में अपने पैतृक गांव बटेश्वर से ग्वालियर के पास मुरैना चले गए थे।
अटल बिहारी वाजपेयी ने सरस्वती शिशु मंदिर में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और 1934 में फिर से बड़नगर, उज्जैन में एंग्लो-वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने बी.ए. ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत की डिग्री और डीएवी कॉलेज, कानपुर से राजनीति विज्ञान में एम.ए. के साथ पोस्ट-ग्रेजुएशन किया।
अटल बिहारी बाजपेयी जी भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष भी थे, मेरी इक्यावन कविताएं, इनकी प्रसिद्ध कविता संग्रह है। 16 अगस्त 2018 को राजनीति और साहित्य जगत का यह सितारा हमेशा के लिए सो गया।
ऊँचाई, गीत नया गाता हूँ , कदम मिलाकर चलना होगा , इनके प्रमुख कृतियां हैं। 2015 में अटल बिहारी बाजपेयी जी को देश के शीर्ष नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
अटल बिहारी वाजपेयी की 10 प्रसिद्ध कविताएँ Atal Bihari Vajpeye Ki Kavita
- नादान पड़ोसी को कड़ा सन्देश नहीं चेतावनी
- गीत नया गाता हूँ अटल बिहारी वाजपेयी
- मौत से ठन गई अटल बिहारी वाजपेयी
- ऊँचाई अटल बिहारी वाजपेयी
- आओ फिर से दिया जलाएँ अटल बिहारी वाजपेयी
- बुलाती तुम्हें मनाली …
- दूर कहीं कोई रोता है अटल बिहारी वाजपेयी
- कदम मिलाकर चलना होगा अटल बिहारी वाजपेयी
- भारत जमीन का टुकड़ा नहीं ••• Famous Atal Bihari Vajpayee Poems
- अपने ही मन से कुछ बोलें अटल बिहारी वाजपेयी
नादान पड़ोसी को कड़ा सन्देश नहीं चेतावनी Atal Bihari Vajpeye Ki Kavita
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता
त्याग, तेज, तप, बल से रक्षित यह स्वतंत्रता
प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से
कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर आग लगाने का जो सपना
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो
आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है
तुम्हें मुफ्त में मिली न कीमत गई चुकाई
अंगरेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं
मां को खंडित करते तुमको लाज न आई।
अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो
दस-बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली
बरबादी से तुम बच लोगे, यह मत समझो।
धमकी, जेहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे, यह मत समझो
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का भाल झुका लोगे, यह मत समझो।
जब तक गंगा की धार, सिंधु में ज्वार
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन, यौवन अशेष।
अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध
काश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी
गीत नया गाता हूँ अटल बिहारी वाजपेयी
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता- “नादान पड़ोसी को चेतावनी ” Atal Bihari Vajpeye Kavita
पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 23) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी
मौत से ठन गई कविता अटल बिहारी वाजपेयी
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी है कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई,
मौत से ठन गई।
Jhansi Ki Rani kavita झाँसी की रानी कविता का सारांश
- पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 34) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता “ऊँचाई”
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा, उतना एकाकी होता है
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
धरती को ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु !
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 24) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता “आओ फिर से दिया जलाएँ”
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ
आहुति बाक़ी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ
पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 15) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी
बुलाती तुम्हें मनाली …
आसमान में बिजली ज़्यादा,
घर में बिजली कम
टेलीफ़ोन घुमाते जाओ,
ज़्यादातर गुमसुम
बर्फ़ ढँकी पर्वतमालाएँ,
नदियाँ, झरने, जंगल
किन्नरियों का देश,
देवता डोलें पल-पल
हरे-हरे बादाम वृक्ष पर,
लदे खड़े चिलगोज़े
गंधक मिला उबलता पानी,
खोई मणि को खोजे
दोनों बाँह पसार,
बुलाती तुम्हें मनाली
दावानल में मलयानिल-सी
महकी, मित्र, मनाली
अटल बिहारी वाजपेयी “दूर कहीं कोई रोता है”
तन पर पहरा, भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का,
क्रंदन सदा करुण होता है।
जन्म दिवस पर हम इठलाते,
क्यों न मरण-त्यौहार मनाते,
अंतिम यात्रा के अवसर पर,
आँसू का अशकुन होता है।
अंतर रोएँ, आँख न रोएँ,
धुल जाएँगे स्वप्न सँजोए,
छलना भरे विश्व में,
केवल सपना ही सच होता है।
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली-गली है,
मैं भी रोता आस-पास जब,
कोई कहीं नहीं होता है।
दूर कहीं कोई रोता है।
पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 32) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी
शमशेर बहादुर सिंह की कविता | Shamsher bahadur Singh ki Kavita in Hindi
कदम मिलाकर चलना होगा
Class 10 Ambar Bhag 2 Chapter 14 कदम मिलाकर चलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं Famous Atal Bihari Vajpayee Poems
Atal Bihari Vajpeye Ki Kavita
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
हिन्दी कविता पथ भूल न जाना पथिक कहीं | Path Bhul Na Jana Pathik kahin
Atal Bihari Vajpayee poems in Hindi
Atal Bihari Vajpeye Ki Kavita
अपने ही मन से कुछ बोलें अटल बिहारी वाजपेयी
Atal Bihari Vajpeye Ki Kavita
अपने ही मन से कुछ बोलें
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें
पृथिवी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है, अंतिम दस्तक पर ख़ुद दरवाज़ा खोलें
जन्म-मरण का अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अँधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 97) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी
Atal Bihari Vajpeye Ki Kavita
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