Last Updated on August 31, 2023 by Manu Bhai
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है | छठ पूजा का महत्त्व , छठ पूजा का पौराणिक महत्त्व | छठ पूजा का लाभ | खड़ना कब होता है ? नहाय खाय कब होता है ? kab hai chhath puja | Chhath Puja Vidhi | Chhath Puja Kyon Manaya Jata hai | Chhath Puja ka mahatva
भारत की एक विशेष बात यह हैं कि यहा कई धर्मो और सभ्यताओं को मानने वाले लोग एक साथ मिलकर रहते है और देश की अखंडता का प्रमाण देते हैं। क्योंकि देश मे कई धर्मो और मान्यताओं को मानने वाले लोग निवास करते हैं तो जाहिर है कि वह कई तरह के त्यौहार भी मनाते हैं और इसी वजह से भारत को त्यौहारों का देश भी कहा जाता हैं। भारत के एक बड़े भूभाग बिहार में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला एक प्रमुख और लोकप्रिय त्यौहार छठ पूजा का त्यौहार भी हैं, जिसके बारे में हम इस लेख में बात करेंगे।
इस लेख में हम ‘छठ पूजा क्या होती हैं’, ‘छठ पूजा क्यों मनाया जाता हैं’, ‘छठ पूजा का पौराणिक महत्व‘, ‘छठ पूजा के लाभ‘, ‘छठ पूजा से सम्बंधित कथाएं और ‘छठ पूजा के महत्व‘ Chhath puja kab hai जैसे विषयों पर बात करेंगे।
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनायें
छठ पूजा क्या हैं? छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? Chhath Puja Kya hai
छठ पूजा सनातन धर्म से जुड़ा हुआ एक प्रमुख त्यौहार हैं जिसमे सूर्य व प्रकति की उपासना और आराधना को महत्व दिया जाता हैं। छठ पूजा का त्यौहार कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को दीवाली के बाद मनाया जाता हैं। यह देश मे मनाए जाने वाले उन पर्वो में से एक हैं जो वैदिक काल से चले आ रहे हैं। इस पर्व में मूर्ति पूजा का कोई महत्व नहीं है। छठ पूजा के त्यौहार का तात्पर्य मुख्य रूप से सूर्य की उपासना और आराधना से हैं। इस पर्व के दिन भारी तादात में व्रत भी रखे जाते हैं।
वैसे तो छठ पूजा का त्यौहार झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी मनाया जाता हैं लेकिन इस त्यौहार को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह बिहार राज्य में देखा जाता है। इस त्यौहार को बिहार की संस्कृति का प्रतीक माना जाता हैं। यह कहा जा सकता हैं कि छठ पूजा के त्यौहार को बिहार में होली-दीवाली जैसे बड़े त्यौहारों की तरह मनाया जाता हैं। इस सनातनी त्यौहार को सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु और इनकी बहन माता छठी (षष्टि) को समर्पित माना जाता है।
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? जानें क्या है इसका पौराणिक महत्व
छठपूजा का त्यौहार भारत मे मनाए जाने वाले मुख्य त्यौहारों में से एक है और बिहार में तो यह त्यौहार अपना एक अलग ही महत्व रखता है। काफी सारे ऐसे लोग हैं जो छठपूजा के त्यौहार को मनाते तो हैं लेकिन ‘छठ पूजा क्यों मनाया जाता हैं’ के विषय के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं रखते। दरअसल सनातन धर्म विश्व के सबसे पुराने और सबसे महान धर्मो में से एक हैं। सनातन धर्म के अनुयायी शुरुआत से प्रकृति को पूजते है और उन्हें देवता स्वरूप मानते हैं।
आधुनिक विज्ञान कहता हैं कि सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं तो ऐसे में हमे सब कुछ सूर्य व प्रकृति से मिलता हैं। यह बात हमारा धर्म सालो से कहता आया है और जो हमे इतना सबकुछ देते हैं उन्ही का धन्यवाद और उपासना करने के लिए छठपूजा का त्यौहार मनाया जाता हैं। उस त्यौहार पर सूर्य के साथ उषा, प्रकृति, जल और वायु आदि जीवनदायी तत्वों का धन्यवाद और उपासना की जाती हैं।
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Chhath Puja 2023: नए साल 2023 में छठ पूजा कब है? जानें नहाय खाय और खरना की डेट
छठ का त्योहार नए साल में 17 नवंबर 2023 से 20 नवंबर 2023 तक मनाया जाएगा। इस पर्व की अवधि चार दिन होती है। पहले दिन नहाय-खाय से शुरूआत होती है, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। छठ पूजा 19 नवंबर 2023 को होगी।
छठ पूजा का महत्व Chhath Puja 2023
आज के समय में दुनिया मे कई धर्मो और मान्यताओं को मानने वाले लोग रहते है लेकिन यह बात सभी स्वीकार करते हैं कि सनातन धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मो में से एक हैं और सबसे विकसित सभ्यताओं का भाग भी रह चुका हैं। सनातन धर्म के बारे में हम सभी भली भांति जानते हैं कि यह धर्म दुनिया के सबसे महान धर्मो में से एक हैं जो ज्ञान, सभ्यताओं और संस्कारों से भरपूर हैं।
सनातन धर्म से जुड़े हुए हर एक त्यौहार का अपना एक महत्व होता है और यही मामला हैं छठ पूजा के साथ। जैसा कि हमने आपको बताया कि छठ पूजा के त्यौहार को सूर्य व अन्य प्रकृति के तत्वों की उपासना और धन्यवाद करने के लिये मनाया जाता हैं। यह त्यौहार देश मे मनाये जाने वाले प्रकृति से जुड़े हुए सबसे बड़े त्यौहारों में से एक हैं जो वैदिक काल से चला आ रहा हैं।
छठ पूजा का त्यौहार लोगो को सिखाता हैं कि हमे सूर्य व प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। ना केवल प्रकृति के सम्मान हेतु यह त्यौहार प्रेरणा देता हैं बल्कि यह उपदेश भी देता हैं कि जो हमे सब कुछ दे रहा हैं हम उन्हें सम्मान करना चाहिए और हमेशा उनके प्रति समर्पित रहना चाहिये। आज के समय मे जहा लोग अपने स्वार्थ हेतु प्रकृति को लगातार नुक्सान पहुचा रहे हैं वही इस तरह के त्यौहार हमे प्रकृति का सम्मान करने और उसका बचाव करने का उपदेश देते हैं।
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है ? और छठ पूजा का पौराणिक महत्व
सनातन धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मो में से एक हैं और इस बात का प्रमाण इसी बात से मिल जाता है कि जब कई धर्मों की स्थापना तक नहीं हुई थी उससे सैकड़ों सालों पुराने मंदिर हमारे देश में आज भी मौजूद है। सनातन धर्म से संबंधित हर त्यौहार के बारे में एक खास बात यह भी है कि इनसे कुछ पौराणिक कथाएं जुड़ी होती है जो इनके पौराणिक महत्व को बढ़ा देती है।
अगर बात की जाए छठ पूजा से संबंधित पौराणिक कथाओं की तो वह कुछ इस प्रकार है:
छठ पूजा गीत Chhath Puja Song By T-series
Chhath puja ka video/Chhath puja video
छठ पूजा के गीत Chhath Puja Geet By Sharda Sinha
शारदा सिन्हा के छठ गीत by Sangeet Sadhana Youtube Channel
chhath puja song Uga He Suruj Dev Lyrics
उगह हे सूरज देव भेल भिनसरवा
उगह हे सूरज देव भेल भिनसरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
बड़की पुकारे देव दुनु कर जोरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
बाझिन पुकारें देव दुनु कर जोरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
अन्हरा पुकारे देव दुनु कर जोरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
आ.. आ.. आ..
निर्धन पुकारे देव दुनु कर जोरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
कोढ़िया पुकारे देव दुनु कर जोरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
लंगड़ा पुकारे देव दुनु कर जोरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
उगह हे सूरज देव भेल भिनसरवा
अरघ के रे बेरवा हो पूजन के रे बेरवा हो
छठ पूजा की कथा
राजा प्रियंवद की कहानी
छठ पर्व की शुरुआत कैसे हुआ इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। वेद-पुराण में छठ पूजा करने के पीछे की कहानी को राजा प्रियंवद से जुडी बताई गई है। कथा के अनुसार राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब वह महर्षि कश्यप से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं एवं ततपश्चात महर्षि ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद स्वरुप खाने को दी। जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई परन्तु उन्हें मरा हुआ पुत्र पैदा हुआ।
प्रियंवद मरे हुए पुत्र को देखकर बहुत ही दुखी हुए एवं उस पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में वे स्वयं के प्राण त्यागने लगे। तभी भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इस कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा प्रियंवद को उनकी पूजा करने और दूसरों को उनकी पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। देवी षष्टी मैया के आशीर्वाद से राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की छठ व्रत किया जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि ये पूजा राजा प्रियंवद ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी और तभी से छठ पूजा होना प्रारम्भ हो गया।
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है इससे सम्बंधित और भी कई कथाएं प्रचलित हैं जो इस प्रकार हैं –
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- रामायण से सम्बंधित छठ पूजा कथा : रामायण सनातन धर्म के सबसे महान ग्रंथों में से एक है और इस ग्रंथ के एक भाग में छठ पूजा का महत्व भी समाया हुआ है। मान्यता के अनुसार लंका को जीतने के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को माता सीता के साथ भगवान राम ने उपवास किया था और सूर्यदेव की आराधना की थी। इसी के बाद से छठ पूजा का त्यौहार मनाया जाने लगा।
- महाभारत से संबंधित छठ पूजा कथा : सनातन धर्म के एक लोकप्रिय ग्रंथ महाभारत में भी छठ पूजा का महत्व झलकता हैं। कहा जाता हैं कि वीर कर्ण भगवान सूर्य का परमभक्त था और उन्ही ने भगवान सूर्य की पूजा शुरू की थी। इसके अलावा एक कथा यह भी है कि द्रोपदी ने पांडवों को राजपाट वापस दिलाने की कामना से पहली बार छठ पूजा का व्रत रखा था और सूर्य की आराधना की थी जिसका फल बाद में पांडवों को मिला भी था।
छठ पूजा की विधि :
जब तक आप छठ पूजा की विधि को नहीं समझेंगे तब तक यह नहीं समझ आएगा कि छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? अगर आप भी छठ पूजा के त्यौहार को मनाना चाहते हैं तो बता दें कि इस त्यौहार को मनाने के लिए आपको छठ पूजा करनी होगी और छठ पूजा की विधि बिल्कुल सरल है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
- छठ पूजा के त्यौहार से 2 दिन पहले चतुर्थी के दिनस्नान से निवृत होने के बाद भोजन किया जाता हैं।
- इसके बाद अगले दिन पंचमी को शाम के समय किसी पवित्र नदी या तालाब में पूजा करके भगवान सूर्य की आराधना की जाती हैं और उन्हें बिना नमक का भोजन चढ़ाया जाता है।
- षष्ठी के प्रातः स्नान के बाद निम्न मंत्र के द्वारा उपवास ग्रहण किया जाता हैं:
ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
- इसके बाद पूरे दिन उपवास किया जाता है और शाम के समय नदी या तालाब में जाकर सूर्य देव की आराधना की जाती है और उन्हें अर्घ्य चढ़ाया जाता है।
- अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं। बता दे कि यह अर्घ्य बांस के सूप में केले सहित अन्य फल, अलोना प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढंककर तैयार किया जाता हैं। अर्घ्य देते हुए 3 बार निम्न मन्त्र का उच्चारण किया जाता हैं:
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥
छठ पूजा की महत्वपूर्ण तिथियां
नहाय खाये-
तिथि: कार्तिक शुक्ल चतुर्थी
छठ पर्व का प्रथम दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को होता है जिसे नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। जैसे ही दिवाली समाप्त होती है वैसे ही ज्जिनके घर छठ व्रत रखा जाता है उनके घर की फिर से सम्पूर्ण सफाई शुरू हो जाती है और कार्तिक शुक्ल चतुर्थी छठ पर्व का प्रथम दिन नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि छठ का त्यौहार शुद्धता और पवित्रता का पर्व है। उसके उपरांत व्रती अपने घर या व्रत के स्थान से निकटतम नदी अथवा तालाब में जाकर स्वच्छ जल से स्नान-ध्यान करते है। व्रती इस दिन घर पर शुद्धता और स्वछता से बना भोजन करते हैं। इस दिन खाना कांसे या मिटटी के बर्तन में पकाया जाता है।
खरना और लोहंडा –
तिथि: कार्तिक शुक्ल पंचमी
कार्तिक शुक्ल पंचमी को छठ पर्व का दूसरा दिन होता है जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती (जो व्रत करते हैं) दिन भर उपवास रखते है, सूर्यास्त और खड़ना के पूजा से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते हैं। शाम को चावल गुड़ अथवा गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर की प्रसाद बनाई जाती है। इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में एकान्त-वास करते हुए प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
सभी परिवार, मित्रों एवं रिश्तेदारों को प्रसाद स्वरूप खीर-रोटी खिलाया जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को खरना या खड़ना कहते हैं। इसके उपरांत व्रती अगले 36 घंटों के लिए निर्जला व्रत धारण कर लेता है। मध्य रात्रि को व्रती पूजा के लिए विशेष प्रसाद रूप मे शुद्ध घी के ठेकुआ पकवान बनाते हैं।
संध्या अर्घ्य
तिथि: कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी
छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है, इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। पूरे दिन सभी परिवार मिलकर पूजा की तैयारिया करते हैं। छठ पूजा के लिए इस दिन विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, कचवनिया (चावल के लड्डू) बनाए जाते हैं। छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दउरा कहते हैं उसमें पूजा के लिए प्रसाद, फल डालकर देवकारी में रखा जाता है।
वहां घर पर देवकारी में पूजा अर्चना करने के बाद शाम के समय सूर्यास्त से बहुत पहले एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का कोई पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाते हैं। इस पर्व मे पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है। इस संपूर्ण आयोजन मे महिलाये प्रायः छठी मैया के गीतों को गाते हुए घाट की ओर जातीं हैं।
नदी के किनारे छठ माता का चौरा बनाकर उसपर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल अर्पित किया जाता है एवं दीप प्रज्वलित किया जाता है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले, पूजा का सारा सामान लेकर घुटने तक पानी में जाकर खड़े होकर, डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की जाती है।
उषा अर्घ्य या परना
तिथि: कार्तिक शुक्ल सप्तमी
उषा अर्ध्य का दिन यानि चौथे अर्थात अंतिम दिन या परना , इस दिन सुबह उदियमान सूर्य यानि उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले हीं व्रतीयो को घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा करने सभी परिजनो के साथ पहुँचते हैं। इस दिन बड़ा धूमधाम और उल्लास से छठ का परना का दिन मनाया जाता है।
संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है, यानी जो पकवान संध्या अर्ध्य में अर्पित किया जाता है उन्हें उषा बेला के अर्ध्य में नहीं प्रयोग किया जाता है। परन्तु कन्द, मूल, फलादि वही रहते हैं। सभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य के समान ही किए जाते हैं। पूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट के पूजन का विधान है।
इस तरह से चार दिन तक चलने वाला महा छठ व्रत का त्यौहार मनाया जा सकता हैं।
छठ पूजा के लाभ: छठ पूजा मनाने के लाभ इस प्रकार हैं –
वैसे तो छठ पूजा सूर्य और प्रकृति को उनके द्वारा हमें दिए जाने वाले जीवन का धन्यवाद करने के लिए और उनके आराधना करने के लिए की जाती है लेकिन अगर कोई सच्चे मन से छठ पूजा करता है और भगवान सूर्य व प्रकृति की आराधना करता है तो उपवास के फल स्वरुप उसकी मनोकामनाओ की पूर्ति भी होती है। छठ पूजा के कई लाभ बताये जाते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:
- सच्चे मन से छठ पूजा करने से रोगों का निवारण होता हैं।
- जिन लोगो को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही उन्हें छठ पूजा से संतान प्राप्ति होती हैं।
- आर्थिक रुप से कमजोर लोगों को इस पूजा के द्वारा सम्रद्धि मिलती है।
- विभिन्न कारणों से परेशान लोगों को इस पूजा से सुख और संतुष्टि मिलती है।
- कई तरह की सकारात्मक मनोकामनाओं की पूर्ति छठ पूजा का व्रत रखने से होती है।
निष्कर्ष!
इस दुनिया में कई देश है और उन देशों में कई धर्मों और मान्यताओं को मानने वाले लोग रहते हैं जो अपनी मान्यताओं के अनुसार त्योहारों को भी मनाते हैं। छठ पूजा प्रकृति को समर्पित विश्व के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है जिसे भारत ने काफी बड़े स्तर पर मनाया जाता है तो ऐसे में इस त्यौहार की पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है। इसी उद्देश्य से हमने इस लेख में ‘छठ पूजा क्या होती हैं’, ‘छठ पूजा क्यों मनाया जाता हैं’, ‘छठ पूजा का पौराणिक महत्व’, ‘छठ पूजा के लाभ’, ‘छठ पूजा से सम्बंधित कथाएं और ‘छठ पूजा के महत्व’ जैसे विषयों की जानकारी दी हैं। उम्मीद करते हैं अब आप समझ गए होने की छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?
Chhath Puja Ka Photo
Chhath Puja Photo
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धन्यवाद
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