श्री हनुमान के पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ कहानी / Hanuman Ke Putra Makardhwaj Ki Katha

Last Updated on December 6, 2023 by Manu Bhai

बजरंगबली हनुमान के पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ कहानी विस्तार से पढ़िए

हिन्दू पौराणिक कथाओं में, भगवान हनुमान को शक्ति, भक्ति और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। उनकी कथाएं न केवल प्रेरणादायी होती हैं, बल्कि गहरी आध्यात्मिक महत्त्व भी रखती हैं। श्री हनुमान जी एक अद्वितीय और प्रमुख पात्र हैं जिन्हें श्री रामायण कथा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हनुमान जी, जिन्हें पवनपुत्र भी कहा जाता है, श्री राम के विश्वासपात्र और सेवक थे जिन्होंने अपने स्वामी श्री राम के साथ जीवन भर सेवा की। उन्होंने अपने सेवक धर्म की मिसाल स्थापित की और अपने वीरता और बल के आदर्श को प्रकट किया। हनुमान जी ने अपने आप श्री राम के संकटों को दूर किया था, इसलिए उन्हें “संकट मोचन” और “महाबली हनुमान” कहा जाता है।

हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी ब्रह्मचारी थे, लेकिन कथाओं में कई तथ्य मिलते हैं जिनके अनुसार हनुमान जी का एक पुत्र था, जिसका नाम मकरध्वज था। भगवन श्री हनुमान के जीवन के विभिन्न पहलुओं में, उनके पुत्र मकरध्वज का भी एक विशेष स्थान है। मकरध्वज का जन्म की कथा एक रोचक कथा है, जो हनुमान जी के साथ जुड़ी दिव्य अवतार और चमत्कार को दर्शाती है। मकरध्वज की माता एक मछली थी। वह भी हनुमान की तरह वानर था और अत्यंत बलशाली था। इससे प्रश्न उठता है कि हनुमान के अपने ही पुत्र से क्यों युद्ध हुआ? कैसे हुआ कि मकरध्वज हनुमान के पिता बने? दोनों में से कौन जीता? चलिए इसे विस्तार से जानते हैं मकरध्वज कौन था ?

Hanuman Ka Putra Makardhwaj

भगवान हनुमान के पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ ?

भगवान् महावीर हनुमान जी आजीवन ब्रह्मचारी थे, यह बात सभी जानते हैं लेकिन ये बहुत कम लोग जानते हैं कि आजीवन अविवाहित रहने के बाद भी हनुमान जी का एक पुत्र था। श्रीराम के अनन्य भक्त, अति बलशाली, अथाह समुद्र को एक छलांग मे लांघ जाने वाले, रावण के सोने की लंका जलाने वाले बजरंगबली को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। हालांकि बजरगबलि पुत्र के जन्‍म की कथा बहुत कम ही लोग जानते हैं। वाल्मीकि रामायण में इससे संबंधित एक प्रसंग भी मिलता है। तो चलिए जानते हैं हनुमान जी के पुत्र का जन्‍म कैसे हुआ था ?

हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा

हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज के जन्म की कथा भगवान श्री राम के वनवास से संबंधित है। जब श्री राम लक्ष्मण और जानकी वनवास काल में होते हैं तब रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था। फिर भगवान राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज में वन वन भटकते हैं जहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से होती है। हनुमान जी राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बिठाकर वानरों के राजा सुग्रीव से मिलवाते हैं। तब वानर राज सुग्रीव श्री राम को बताते हैं कि माता सीता को रावण आकाश मार्ग से दक्षिण दिशा की ओर लेकर गया है। बहुत प्रयास करने के बाद जब भगवान श्री राम और उनके वानर साथियों को यह पता चलता है कि माता सीता का अपहरण लंकापति रावण ने किया है। तब भगवान श्री राम हनुमान को माता सीता को खोजने दक्षिण दिशा में भेजते हैं। हनुमान जी जब अपने दल बल के साथ दक्षिण दिशा के बिल्कुल अंतिम छोर पर पहुंचते हैं तो वहां उन्हें समुद्र दिखाई देता है, इसे पार करना हनुमान जी के लिए भी असंभव सा जान पड़ रहा था। परंतु, अंगद एवं जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी अपनी शक्ति का पहचान करवाया और उन्हें समझाया कि आप पवन पुत्र हनुमान हो आप अपारशक्ति के मालिक हो आप कोई भी काम चुटकी बजाते कर सकते हो फिर आपके लिए यह समुद्र पार करना कौन सी बड़ी बात है। 

हनुमान के पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ

तब हनुमान जी को अपनी असली शक्ति का आभास होता है और वह एक छलांग में समुद्र पार कर लंका पहुंच जाते हैं। लंका पहुंचकर हनुमान जी माता सीता की खोज प्रारंभ कर देते हैं, जहां उनकी मुलाकात रावण के भाई और विष्णु भक्त विभीषण से होती है। विभीषण जी हनुमान को बताते हैं कि रावण ने माता सीता को लंका के अशोक वाटिका में रखा हुआ है। जहां चौबीसों घंटे कई राक्षसी और राक्षस पहरा देते रहते हैं। हनुमान जी किसी तरह उन राक्षसों का ध्यान भटका कर माता सीता से मुलाकात करते हैं और अपना परिचय रामदूत हनुमान होने का देते हैं। हनुमान जी माता सीता को बताते हैं कि माता मैं भगवान श्री राम के कहने से आपकी खोज में यहां लंका तक आ पहुंचा हूं। परंतु जब माता सीता को विश्वास नहीं होता कि यह राम का कोई दूत है तो प्रमाण के रूप में वे श्री राम द्वारा दी गई मुद्रिका दिखाते हैं, जिसे देखकर सीता जी समझ जाती हैं और उन्हें विश्वास हो जाता है कि उनके पति श्री राम ने उन्हें यहां से ले जाने को भेजा है।

हनुमान जी माता सीता से विनती करते हैं कि हे माता अब तो आप हमारे साथ श्री राम प्रभु के पास चलिए, परंतु सीता जी हनुमान जी के साथ चलने से मना कर देती हैं। सीता जी कहती हैं कि हे हनुमान तुम मेरे पुत्र के समान हो फिर भी मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती क्योंकि मैं एक पतिव्रता नारी हूं और श्रीराम के सिवाय मैं और किसी भी पुरुष के संपर्क में या उसके साथ में नहीं जा सकती हूं तो तुम जाकर श्री राम को कहना कि सीता आपकी प्रतीक्षा कर रही है। उनसे कहना कि हे श्री राम आप इस राक्षस रावण का वध करके मुझे अपने साथ ले जाना। इसके बाद हनुमान जी माता सीता से विदा लेते हुए कहते हैं कि हे माता मैं आपका संदेश प्रभु श्रीराम तक अवश्य पहुंच जाऊंगा लेकिन उससे पहले मुझे इन राक्षसों की शक्ति का थाह लेना है तो मैं अभी कुछ देर लंका में ही रुकूंगा। इतना कर हनुमान जी वहां से चले गए और वाटिका में घूम-घूम कर वृक्षों के फल खाकर अपना पेट भरने लगे तो कुछ वृक्ष को उखाड़ कर फेंक देते, कुछ राक्षसों को सूर धाम भी पहुंचा रहे थे। उन्होंने पूरी अशोक वाटिका को उजाड़ दिया। तब रावण के सेना के राक्षस हनुमान से युद्ध करने लगते हैं लेकिन हनुमान जी को कोई युद्ध में परास्त नहीं कर पाता है और ना ही उन्हें पकड़ पाता है।

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तब परेशान होकर रावण ने अपने सबसे बलशाली और बुद्धिमान पुत्र मेघनाथ को हनुमान जी को पकड़ने के लिए भेजता है। मेघनाथ ने भी बहुत प्रयास किए पर फिर भी वह हनुमान जी को पकड़ नहीं पा रहा था। अंत में वह ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान जी को पकड़ लेता है और हनुमान जी को रावण की सभा में प्रस्तुत करता है।  वहां सभा में रावण हनुमान जी के लिए यह निर्णय लेता है कि वानरों की पूछ उनकी सबसे प्यारी वस्तु होती है इसलिए हनुमान जी के पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है। बहुत प्रयास करने के बाद रावण के सैनिकों ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने में सफलता पाई, परंतु हनुमान जी के पूंछ में आग लगाते ही वह उड़ जाते हैं और वह उड़कर पूरे लंका में आग लगा देते हैं। इससे पूरी लंका जलकर राख हो जाती है। अंत में आग की तपिश से बचने के लिए हनुमान जी समुद्र में छलांग लगा देते हैं और अपनी पूछ की आग बुझाते हैं।

अब इस कथा में आगे बढ़ते हैं…

एक अनसुनी कथा: हनुमान जी के पुत्र का जन्म

फिर उसके बाद हनुमान जी लंका से वापस आकर भगवान श्रीराम को माता सीता के बारे में सब कुछ विस्तार से बताते हैं कि माता सीता मिल गई हैं। वह कहां है और किस हालत में है हनुमान जी एक एक शब्द श्रीराम को सुनाते हैं। फिर श्री राम ने अपनी सेना तैयार कर रावण से युद्ध के लिए लंका को प्रस्थान किया। पहले तो श्री राम भगवन रावण के पास दूत भेजकर बहुत समझाने का प्रयास करते हैं कि अभी देर नहीं हुई है, माता सीता को वापस कर दे और श्रीराम से क्षमा मांग ले तो वह रावण को क्षमा भी कर सकते हैं। परंतु रावण अपने अभिमान में इतना चूर था कि वह राम की एक ना सुना और ना ही उसने अपने बंधु बांधओं की सुनी। परिणाम स्वरूप एक भयानक युद्ध का आगाज हो गया .

पाताल लोक में हनुमान जी को मिला अपना पुत्र

रामायण के अनुसार जब रावण भगवान श्री राम से युद्ध में हारने लगा तो उसने अपने भाई पाताल लोक के स्वामी अहिरावण को श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करने के लिए बुलाया। अहिरावण तो रावण से भी बड़ा मायावी राक्षस राजा था, उसने हनुमान का रूप धारण करके भगवन श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण किया और वह प्रभु राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेकर चला गया। जब इस बात का पता चला तो भगवान राम के शिविर में हाहाकार मच गया और उनकी खोज होने लगी. बजरंगबली श्रीराम और लक्ष्मण को ढूंढते हुए पताल में जाने लगे. पाताल लोक के सात द्वार थे और हर द्वार पर एक पहरेदार था. सभी पहरेदारों को हनुमान जी ने परास्त कर दिया, लेकिन अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली एक वानर पहरा दे रहा था।

हूबहू अपने जैसे वानर को देखकर हनुमान जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। जब हनुमान जी ने उस वानर से उसका परिचय पूछा, तो उसने अपना नाम मकरध्वज (Makardhwaj) बताया और अपने पिता का नाम हनुमान बताया। पिता के रूप में अपना नाम सुनकर हनुमान जी मकरध्वज पर अत्यंत क्रोधित हो गए और बोले कि अरे बालक यह असंभव है, क्या तू नहीं जानता कि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहा हूं, अखंड ब्रह्मचारी हूँ मैं, तो मेरा पुत्र कहा से हो गया। हनुमान जी इस बात को मानने को तैयार नहीं हुए की उनका कोई पुत्र भी हो सकता है, तो मकरध्वज ने स्वयं अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान जी को सुनाई। मकरध्वज ने बताया कि जब आप लंका जला कर समुद्र में अपनी पूंछ की आग बुझाने को कूदे थे, तब आपके शरीर का तापमान बहुत ज्‍यादा था। जब आप सागर के ऊपर थे, तब आपके शरीर के पसीने की एक बूंद सागर में गिर गई थी, जिसे एक मकरी (मगरमच्छनी) ने पी लिया था, और उसी पसीने की बूंद से वह गर्भावस्था को प्राप्त हो गई।

पूर्व जन्‍म में मकरी एक गन्धर्व कन्या (अप्सरा) थी

उसके तत्काल बाद मेरी माता पाताल लोक के कुछ मछुआरों के जाल में फंस गयी थी, जिन्हे पाताल लोक ले जाय गया, जहाँ मेरा जन्म हुआ। मेरी माता ही वो स्त्री मगरमच्छ थी जिन्होंने मकरध्‍वज को जन्‍म दिया था। मेरे जन्म लेते ही मेरी माता गंधर्व कन्या में परिवर्तित हो गयी। मेरी मकर माता पूर्व जन्म में एक गन्धर्व कन्या थी, लेकिन श्राप के कारण मकर बन गई थी। इसलिए उन्हें मुझे छोड़कर गंधर्व लोक जाना पड़ा। यह सुनकर हनुमान जी ने मकरध्वज को अपने गले से लगा लिया। हालांकि अपने पिता के रूप में हनुमान जी को पहचानने के बाद भी मकरध्वज ने हनुमान जी को अंदर नहीं जाने दिया। इससे हनुमान जी प्रसन्‍न भी हुए। बाद में दोनों के बीच जमकर युद्ध हुआ और अंत में हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसे बांधकर दरवाजे से हटा दिया और फिर श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त कराया। बाद में अहिरावण के मृत्यु के पश्चात् भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को ही पताल का नया राजा घोषित कर दिया।

हनुमान जी ने मकरध्वज कि बातों पर भरोसा कर लिया था , परन्तु फिर भी उनके मन में संशय था कि क्या सचमुच में ऐसा हो सकता है तो उन्होंने मकरध्वज से पूछा कि तुम्हे अपने जन्म के बारे में इतना सब कैसे पता है ? तब मकरध्वज ने बताया कि उसे ये सब स्वयं नारद जी ने बताया है।

हमारे देश में गुजरात प्रान्त में हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की पूजा की जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि मकरध्वज का भी एक पुत्र था जिसका नाम जेठीध्वाज था। मकरध्वज हनुमान के समान ही बलशाली था इसलिये उसे पराजित करना हनुमान जी के लिए भी बहुत आसान नहीं था और वे अपने पिता के समान ही महान सेवक था, इसलिये अपने पिता के आदेश पर भी वो द्वार से नहीं हटता।

मकरध्वज के बारे में प्रश्न FAQ

प्रश्न: मकरध्वज कौन था ? हनुमान के पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ

मकरध्वज भगवान हनुमान का पुत्र था। वह हनुमान की दिव्य संयोग से उत्पन्न हुआ था। मकरध्वज का अर्थ होता है “मकर के ध्वज” यानी “मगरमच्छ का झंडा”। इसलिए उसके शरीर का ऊपरी भाग मनुष्य के और निचला भाग मकर के समान था। मकरध्वज भगवान हनुमान की विशेषताओं और गुणों को प्राप्त करते थे और धर्म की रक्षा करने के लिए उनकी सेवा में लगे रहते थे।

प्रश्न: मकरध्वज के जन्म का महत्व क्या है?

मकरध्वज के जन्म का अद्भुत महत्व है। यह दो शक्तिशाली ताकतों – भगवान हनुमान और रहस्यमय मकर के – के संयोग का प्रतीक है। मकरध्वज दोनों माता-पिता के सर्वश्रेष्ठ गुणों को प्रतिष्ठित करते हैं और धरती और समुद्र के बीच एक दिव्य संबंध का प्रतीक है।

प्रश्न: क्या हिंदू धर्म में मकरध्वज को पूजा जाता है?

हाँ, मकरध्वज को हिंदू धर्म में बहुत गौरव और सम्मान के साथ पूजा जाता है। उन्हें भगवान हनुमान के पुत्र के रूप में मान्यता है और उनकी पूजा विधान के अनुसार की जाती है। भक्तजन उन्हें आदर और श्रद्धा से पूजते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।

प्रश्न: क्या मकरध्वज अपने पिता के समान शक्तिशाली हैं?

हाँ, मकरध्वज अपने पिता भगवान हनुमान की तरह ही शक्तिशाली हैं। वे अपनी माता-पिता के गुणों को विरासत में लेते हैं और उन्हें अपने स्वयं के शक्तिशाली आयाम के साथ जन्मते हैं। मकरध्वज को उनकी पिता के धार्मिक और आध्यात्मिक विचारधारा के परिपूर्ण रूप का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न: क्या मकरध्वज की कोई अद्भुत शक्ति है?

हाँ, मकरध्वज की अद्भुत शक्ति है। उन्हें दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हैं और वे अपनी शक्तियों का उपयोग करके अद्भुत कार्य कर सकते हैं। वे धार्मिक और न्यायप्रिय दृष्टिकोण रखते हैं और धर्म की संरक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मकरध्वज को अपनी शक्ति के साथ एक संरक्षक, सहायक और उपास्य रूप में मान्यता है।

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