Last Updated on July 20, 2024 by Manu Bhai
किस देश को जम्बूद्वीप के नाम से भी जाना जाता है
India is also known as Jambudweep
संस्कृत में जम्बूद्वीप का अर्थ है जहां जंबू के पेड़ Tree of Indian Blackberry उगते हैं। Ancient Time में भारतीयों द्वारा भारत को सूचित करने (Indicate) के लिए जम्बूदीप शब्द का उपयोग किया जाता है. कहीं-कहीं लोग Jambudip and Jambudvip or Jumbudweep उच्चारण करते हैं। जम्बूद्वीप शब्द का प्रयोग अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया था।
कहा जाता है कि भारत भूमि पे या भारतवर्ष में जन्म लेने के लिए प्राणी ही नहीं देवी- देवता भी लालाइत रहते हैं. इस देश में या इस धरती पर अनेकों पर्वत श्रृंखलाएं एवं नदियाँ विध्यमान हैं और उन पर्वतों पे और नदियों के तट पे बड़े-बड़े ऋषि मुनि एवं आत्मज्ञानी अपने आश्रम बना कर निवास करते थे, कुछ तो आज भी रहते हैंl
जम्बूद्वीप क्या है? जम्बूद्वीप किसे कहते है ? Jambudweep kya hai ?
भारतवर्ष एक कर्मप्रधान देश है और यहाँ जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है।
पुराणिक ब्रह्मांड शास्त्र के अनुसार, संपूर्ण ब्रह्मांड सात सांद्र द्वीप महाद्वीपों में बांटा गया है (divided into seven Concentric Islands).
सात घेरे वाले महासागरों से अलग, सभी पिछले वाले के Size से दोगुना आकर size का होता है (भीतर से बाहर की ओर ) पुराणों में वर्णित इन सात महाद्वीपों को जम्बूदीप, प्लाक्सद्वीप, सल्मालिद्वीप, कुसाद्वीप, क्रौनकाद्वीप, सकादिविप और पुष्करद्वीप कहा जाता है। सात मध्यवर्ती महासागरों में क्रमशः नमक-पानी, गन्ना का रस, शराब, घी, दही, दूध और पानी होता है।
जम्बूद्वीप महाद्वीप (Indian Blackberry Island)
जम्बूद्वीप को सुदर्शन द्वीप के रूप में भी जाना जाता है, उपर्युक्त योजना में सबसे समेकित द्वीप बनाता है। इसका नाम जंबू पेड़ (भारतीय ब्लैकबेरी के लिए एक और नाम) Generally हमलोग जम्बू को जामुन के नाम से जानते हैं. ऐसा विश्वास believe है की जिस जगह पे जंबू के पेड़ यानी जामुन के पेड़ ज्यादा होते थे इसलिए इस भू -भाग को जम्बूद्वीप कहा जाता था.
जंबू के पेड़ के बारे में विष्णुपुराण (च 2) में कहा गया है कि इसके फल हाथियों जितना बड़ा होता है और जब वे सड़ जाते हैं और पहाड़ों के ऊपर गिर जाते हैं, तो उनके व्यक्त रस से रस की एक नदी बनती है।
इस तरह की नदी को जंबुनदी (जंबू नदी) कहा जाता है और जंबुद्वीप के तरफ से बहती है, जिसके निवासियों ने इसका पानी पीया है।
जैसा कि मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि जम्बूद्वीप का प्रसार उत्तर और दक्षिण के बजाय मध्य क्षेत्र में ज्यादा था, और उस फैलाव क्षेत्र को मेरुवर्ष या इलावर्त के नाम से जानते थे.
इलावर्त के केंद्र में पहाड़ों के राजा सुनहरे मेरु पर्वत है. मेरु पर्वत के शिखर पर, भगवान ब्रह्मा का विशाल शहर है, जिसे ब्रह्मपुरी के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मपुरी के आस-पास आठ 8 और भी शहर हैं – जिसमें से एक भगवान इंद्र और सात अन्य देवताओं का है।
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मार्कंडेय पुराण और ब्रह्मांड पुराण जम्बूद्वीप को चार विशाल क्षेत्रों में विभाजित करते हैं, जो कि आकर में कमल के चार पंखुड़ियों की सामान हैं, एवं मेरु पर्वत एक फली जैसे केंद्र में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मपुरी शहर नदी से घिरा हुआ है, जिसे आकाश गंगा कहा जाता है. आकाश गंगा को भगवान विष्णु के पैर से आगे से निकलता है और चंद्र क्षेत्र धोने के बाद “आसमान के माध्यम से” गिरता है और ब्रह्मपुरी को घेरने के बाद “चार शक्तिशाली धाराओं में विभाजित होता है”, जो चार विपरीत दिशाओं में बहता है ऐसा मानते हैं.
एक कथा के अनुसार महाराज सागर के पुत्रों द्वारा पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ अन्य उपद्वीप भी बन गए थे .
- स्वर्णप्रस्थ
- चन्द्रशुक्ल
- आवर्तन
- रमणक
- मन्दहारिण
- पांच्यजन्य
- सिंहल और
- लंका
वैसे यदि देखा जाय तो आज का भारतवर्ष जम्बूद्वीप से काफ़ी छोटा है, तब का भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था. आज का हमारा भारत ना ही जम्बूद्वीप है न भारतवर्ष और ना हीं आर्यावर्त, हिंदुस्तान भी है तो आधा अधूरा.
इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म की उत्पत्ति के पूर्व यह लिखित प्राचीन ग्रंथ के अनुसार :- ” हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥- (बृहस्पति आगम)
अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। यानी कि हिन्दुस्तान चंद्रगुप्त मौर्य के काल में था लेकिन आज जिसे हम हिन्दुस्तान कहते हैं वह क्या है?
जम्बूद्वीप का विस्तार
मध्यलोक में असंख्यात द्वीप-समूहों से वेष्टित गोल तथा जंबूवृक्ष से युक्त जंबूद्वीप स्थित है। यह एक लाख योजन विस्तार वाला है|
जंबूद्वीप की परिधि – तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताइस योजन, तीन कोश, एक सौ अट्ठाइस धनुष और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल है अर्थात् योजन ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष १३-(१/२) अंगुल है। लगभग १२६४९०८००६ मील।
जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल – सात सौ नब्बे करोड़, छप्पन लाख, चौरानवे हजार, एक सौ पचास ७९०,५६,९४,१५० योजन है अर्थात् तीन नील, सोलह खबर, बाईस अरब, सतहत्तर करोड़, छ्यासठ लाख (३,१६,२२,७७,६६,००,०००) मील है।
जम्बूद्वीप की जगती – आठ योजन (३२०००मील) ऊँची, मूल में बारह (४८००० मील), मध्य में आठ (३२००० मील) और ऊपर में चार महायोजन (१६०००) मील विस्तार वाली है। जंबूद्वीप के परकोटे को जगती कहते हैं। यह जगती मूल में वङ्कामय, मध्य में सर्वरत्नमय और शिखर पर वैडूर्यमणि से निर्मित है, इस जगती के मूल प्रदेश में पूर्व-पश्चिम की ओर सात-सात गुफायें हैं, तोरणों से रमणीय, अनादिनिधन ये गुफायें महानदियों के लिए प्रवेश द्वार हैं।
वेदिका – जगती के उपरिम भाग पर ठीक बीच में दिव्य सुवर्णमय वेदिका है। यह दो कोश ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी है अर्थात् ऊँचाई २ कोश और चौड़ाई ५०० धनुष है।
जगती के उपरिम विस्तार चार योजन में वेदी के विस्तार को घटाकर शेष को आधा करने पर वेदी के एक पाश्र्व भाग में जगती का विस्तार है यथा धनुष।
विशेष – दो हजार धनुष का एक कोश और चार कोश का एक योजन होने से चार योजन में ३२००० धनुष होते हैं अत: ३२००० धनुष में ५०० धनुष घटाया है।
वेदी के दोनों पाश्र्व भागों में उत्तम वापियों से संयुक्त वन खंड हैं। वेदी के अभ्यंतर भाग में महोरग जाति के व्यंतर देवों के नगर हैं। इन व्यंतर नगरों के भवनों में अकृत्रिम जिनमंदिर शोभित हैं।
जंबूद्वीप के प्रमुख द्वार – चारों दिशाओं में क्रम से विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार गोपुरद्वार हैं। ये आठ महायोजन (३२००० मील) ऊँचे और चार योजन (१६००० मील) विस्तृत हैं। सब गोपुर द्वारों में सिंहासन, तीन छत्र, भामंडल और चामर आदि से युक्त जिनप्रतिमायें स्थित हैं। ये द्वार अपने-अपने नाम के व्यंतर देवों से रक्षित हैं।। प्रत्येक द्वार के उपरिम भाग में सत्रह खन (तलों) से युक्त, उत्तम द्वार हैं।
विजय आदि देवों के नगर – द्वार के ऊपर आकाश में बारह हजार योजन लम्बा, छह हजार योजन विस्तृत विजयदेव का नगर है। ऐसे ही वैजयंत आदि के नगर हैं। इनमें अनेकों देवभवनों में जिनमंदिर शोभित हैं। विजय आदि देव अपने-अपने नगरों में देवियों और परिवार देवों से युक्त निवास करते हैं।
वनखंड वेदिका – जगती के अभ्यंतर भाग में पृथ्वीतल पर दो कोस विस्तृत आम्रवृक्षों से युक्त वनखंड हैं। सुवर्ण रत्नों से निर्मित उस उद्यान की वेदिका दो कोस ऊंची, पांच सौ धनुष चौड़ी है।
जम्बूद्वीप का विस्तार – मध्यलोक में असंख्यात द्वीप-समूहों से वेष्टित गोल तथा जंबूवृक्ष से युक्त जंबूद्वीप स्थित है। यह एक लाख योजन विस्तार वाला है|
जंबूद्वीप की परिधि – तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताइस योजन, तीन कोश, एक सौ अट्ठाइस धनुष और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल है अर्थात् योजन ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष १३-(१/२) अंगुल है। लगभग १२६४९०८००६ मील।
जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल – सात सौ नब्बे करोड़, छप्पन लाख, चौरानवे हजार, एक सौ पचास ७९०,५६,९४,१५० योजन है अर्थात् तीन नील, सोलह खबर, बाईस अरब, सतहत्तर करोड़, छ्यासठ लाख (३,१६,२२,७७,६६,००,०००) मील है।
जम्बूद्वीप की जगती – आठ योजन (३२०००मील) ऊँची, मूल में बारह (४८००० मील), मध्य में आठ (३२००० मील) और ऊपर में चार महायोजन (१६०००) मील विस्तार वाली है। जंबूद्वीप के परकोटे को जगती कहते हैं। यह जगती मूल में वङ्कामय, मध्य में सर्वरत्नमय और शिखर पर वैडूर्यमणि से निर्मित है, इस जगती के मूल प्रदेश में पूर्व-पश्चिम की ओर सात-सात गुफायें हैं, तोरणों से रमणीय, अनादिनिधन ये गुफायें महानदियों के लिए प्रवेश द्वार हैं।
वेदिका – जगती के उपरिम भाग पर ठीक बीच में दिव्य सुवर्णमय वेदिका है। यह दो कोश ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी है अर्थात् ऊँचाई २ कोश और चौड़ाई ५०० धनुष है।
जगती के उपरिम विस्तार चार योजन में वेदी के विस्तार को घटाकर शेष को आधा करने पर वेदी के एक पाश्र्व भाग में जगती का विस्तार है यथा धनुष।
विशेष – दो हजार धनुष का एक कोश और चार कोश का एक योजन होने से चार योजन में ३२००० धनुष होते हैं अत: ३२००० धनुष में ५०० धनुष घटाया है।
वेदी के दोनों पाश्र्व भागों में उत्तम वापियों से संयुक्त वन खंड हैं। वेदी के अभ्यंतर भाग में महोरग जाति के व्यंतर देवों के नगर हैं। इन व्यंतर नगरों के भवनों में अकृत्रिम जिनमंदिर शोभित हैं।
जंबूद्वीप के प्रमुख द्वार – चारों दिशाओं में क्रम से विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार गोपुरद्वार हैं। ये आठ महायोजन (३२००० मील) ऊँचे और चार योजन (१६००० मील) विस्तृत हैं। सब गोपुर द्वारों में सिंहासन, तीन छत्र, भामंडल और चामर आदि से युक्त जिनप्रतिमायें स्थित हैं। ये द्वार अपने-अपने नाम के व्यंतर देवों से रक्षित हैं।। प्रत्येक द्वार के उपरिम भाग में सत्रह खन (तलों) से युक्त, उत्तम द्वार हैं।
विजय आदि देवों के नगर – द्वार के ऊपर आकाश में बारह हजार योजन लम्बा, छह हजार योजन विस्तृत विजयदेव का नगर है। ऐसे ही वैजयंत आदि के नगर हैं। इनमें अनेकों देवभवनों में जिनमंदिर शोभित हैं। विजय आदि देव अपने-अपने नगरों में देवियों और परिवार देवों से युक्त निवास करते हैं।
वनखंड वेदिका – जगती के अभ्यंतर भाग में पृथ्वीतल पर दो कोस विस्तृत आम्रवृक्षों से युक्त वनखंड हैं। सुवर्ण रत्नों से निर्मित उस उद्यान की वेदिका दो कोस ऊंची, पांच सौ धनुष चौड़ी है।
जंबूद्वीप का सामान्य वर्णन
जंबूद्वीप के भीतर दक्षिण की ओर भरत क्षेत्र है। उसके आगे हैमवत,हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। हिमवान, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी ये छह पर्वत हैं।
दक्षिण में भरतक्षेत्र का विस्तार योजन है। भरतक्षेत्र से दूना हिमवान पर्वत है, उससे दूना हैमवत क्षेत्र हैंं। ऐसे विदेहक्षेत्र तक दूना-दूना विस्तार आगे आधा-आधा है।
भरतक्षेत्र के मध्य में पूर्व-पश्चिम लंबा समुद्र को स्पर्श करता हुआ विजयार्ध पर्वत है।
हिमवान आदि छह कुलाचलों पर क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केशरी, पुंडरीक और महापुंडरीक ऐसे छह सरोवर हैं।
इन छह सरोवरों से गंगा-सिंधु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकांता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकांता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता-रक्तोदा ये चौदह नदियां निकलती हैं जो कि एक-एक क्षेत्र में दो-दो नदी बहती हुई सात क्षेत्रों में बहती हैं।
विदेहक्षेत्र के बीचोंबीच में सुमेरु पर्वत
भरतक्षेत्र के छह खंड – हिमवान पर्वत के पद्मसरोवर से गंगा-सिंधु नदियां निकलकर नीचे कुंड में गिरकर विजयार्ध पर्वत की गुफाओं में प्रवेश करके दक्षिण भरत में आ जाती हैं और पूर्व-पश्चिम समुद्र में प्रवेश कर जाती हैं इसलिये भरतक्षेत्र के छह खंड हो जाते हैं।
इस प्रकार से जंबूद्वीप की यह सामान्य व्यवस्था है। इस जंबूद्वीप में तीन सौ ग्यारह पर्वत हैं जिनमें एक मेरु, छह कुलाचल, चार गजदंत, सोलह वक्षार, चौंतीस विजयार्ध, चौंतीस वृषभाचल, चार नाभिगिरि, चार यमकगिरि, आठ दिग्गजेंद्र और दो सौ कांचनगिरि हैं। यथा-
१±६±४±१६±३४±३४±४±४±८±२००·३११
सत्रह लाख बानवे हजार नब्बे नदियां हैं। चौंतीस कर्मभूमि, छह भोगभूमि, जम्बू- शाल्मलि ऐसे दो वृक्ष, चौंतीस आर्यखण्ड, एक सौ सत्तर म्लेच्छ खंड और पांच सौ अड़सठ कूट हैं। ये सब कहाँ-कहाँ हैं ? इन सभी को इस पुस्तक में बताया गया है।
जंबूद्वीप का विशेष वर्णन
छह कुलाचल
हिमवान – हिमवानपर्वत भरतक्षेत्र की तरफ १४४७१-५/१९ योजन (५७८८५०५२-१२/१९ मील) लम्बा है और हैमवत क्षेत्र की तरफ २४९३२-१/१९ योजन (९९७२८२१०-१०/१९ मील) लम्बा है। इसकी चौड़ाई १०५२-१२/१९ योजन (४२०८४२१(१/१९मील) प्रमाण है। ऊंचाई १०० योजन (४००००० मील) प्रमाण है।
महाहिमवान – यह पर्वत ४२१०-१०/१९ योजन (१६८४२१०५-५/१९ मील) विस्तार वाला है। हैमवत की तरफ इसकी लंबाई ३७६७४-१६/१९ योजन (१५०६९९३६८-८/१९ मील) है और हरिक्षेत्र की तरफ इसकी लंबाई ५३९३१-६/१९ योजन (२१५७२५२६३-३/१९ मील) है। यह पर्वत २०० योजन (८००००० मील) ऊँचा है।
निषध – यह पर्वत १६८४२-२/१९ योजन (६७३६८०००-१/१९ मील) विस्तृत है। इसकी हरिक्षेत्र की तरफ लंबाई ७३९०१-१७/१९ योजन (२९५६०४३५७-१७/१९ मील) एवं विदेह की तरफ की लंबाई ९४१५६-२/१९ योजन (३७६६२४४२१-१/१९ मील) है। इसकी ऊंचाई ४०० योजन (१६०००००मील) है।
आगे का नील पर्वत निषध के प्रमाण वाला है, रूक्मी पर्वत महाहिमवान सदृश है और शिखरी पर्वत हिमवान के प्रमाण वाला है।
पर्वतों के वर्ण-हिमवान् पर्वत का वर्ण सुवर्णमय है आगे क्रम से चांदी, तपाये हुये सुवर्ण, वैडूर्यमणि, चांदी और सुवर्ण सदृश है।
ये पर्वत ऊपर और मूल में समान विस्तार वाले हैं एवं इनके पाश्र्वभाग चित्र- विचित्र मणियों से निर्मित हैं।
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जम्बूद्वीप के बारे में एक और तथ्य जान लीजिये
जम्बूद्वीप अर्थात,सनातन साम्राज्य !! इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है….
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम् पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
सनातन साम्राज्य का राष्ट्रिय ध्वज भगवा ध्वज,,,,
जम्बूद्वीप स्थित पावन भूमि — भारत,,,,
भायं रत: भारत: !! भायं = ज्ञान,,,रत: = रत
रहना,,,भारत: = भारत,,,
जम्बूद्वीप का वह पावन खंड जहाँ लोग ज्ञान प्राप्त करने एवं ज्ञान देने एवं ज्ञान बाँटने में सदैव रत रहते हैं,वह पावन भूमि भारत है। जहाँ ज्ञान की देवी को माता भारती (सरस्वती) के रूप में पूजा की जाती है।
पाताललोक जम्बूद्वीप के गोलार्द्ध के नीचे स्थित था। पाताललोक का समस्त पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है। पाताललोक ही आज का अमेरिका,,अफ्रीका है।
जम्बूद्वीप से प्राकृतिक कारणों से हिमखंड प्रदेशों के विलग हो जाने के पश्चात् आर्यावर्त्त शेष रहा। ईसाइयत एवं इस्लाम के अभ्युदय के पश्चातआर्यावर्त संकुचित होकर अखंड भारत शेष रहा।
ब्रिटिश अधीनता में अखंड भारत भी खंडित हुआ,,,
भारत शेष रहा। अब काले अंग्रेजोंने भी शेष भारत को भी खंड खंड करने का कुचक्र किया है।
हम आज भी किसी यग्य या पूजाअनुष्ठान में संकल्प लेते समय “जम्बू द्वीपे आर्यावर्ते भरतखंडे” का उच्चारण करते हैं। यह इस अवधारणा को सिद्ध करता है।
क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा….? साथ ही क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम “जम्बूदीप” था ?
परन्तु क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि हमारे महादेश को “”जम्बूदीप”” क्यों कहा जाता है और, इसका अर्थ क्या होता है ?
वस्तुतः हमारे लिए यह जानना अत्यंत ही आवश्यक
है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा ?
क्योंकि एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है.!
लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है।
आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथऔर अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए अत्यंत ही आवश्यक है।
क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में सात भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था….। लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये इस पर कभी,किसी ने कुछ भी नहीं कहा।
अथवा अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि जान बूझकर इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी।
परन्तु हमारा “”जम्बूदीप नाम “” स्वयं में ही सारी कहानी कह जाता है जिसका अर्थ होता है,समग्र द्वीप। इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा विभिन्न अवतारों में मात्र “जम्बूद्वीप” का ही उल्लेख है क्योंकि उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था।
साथ ही हमारा वायु पुराण इस से सम्बंधित पूरी बात
एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने प्रस्तुत करता है।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है….
वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में स्वयम्भु मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था। चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था अतः उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लियाथा जिसका पुत्र नाभि था…..!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था,और,इसी ऋषभ के
पुत्र भरत थे तथा इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था….।
राजा का अर्थ उस समय धर्म,और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था…।
इस तरह राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था। इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और,वही ” भारतवर्ष” कहलाया….।
ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है,,राजा भरत का क्षेत्रऔर इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है….
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम् पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।
(वायु 31-37, 38)
इन बातों को प्रमाणित करने के लिए अपने दैनिक कार्यों की ओर ध्यान देना आवश्यक है कि हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी संकल्प करवाते हैं…।
हालाँकि हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं और,उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र मानकर छोड़ देते हैं।
परन्तु यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है….।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि –
जम्बू द्वीपे भारतखंडेआर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं क्योंकि,इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए
प्रयुक्त किया गया है।
इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात‘भारतवर्ष’ स्थित है……जो कि आर्यावर्त्त कहलाता है.
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं।
परन्तु अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि जब सच्चाई ऐसी है तो फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है…?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि शकुंतला,दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा संभवतः नामों के समानता का परिणाम हो सकता है या हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा।
परन्तु जब हमारे पास वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य उपलब्ध है और,आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों वर्ष पूर्व हो चुका था,तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें..?
सिर्फ इतना ही नहीं हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ अट्ठारहवां वर्ष चल रहा है……।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि एक तरफ तो हम बात एक अरब 97 करोड़ से अधिक पुरानी करते हैं परन्तु,अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं….!
आप खुद ही सोचें कि यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है…?
इसीलिए जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों तो फिर,उन साक्षियों,प्रमाणों और तर्कों के आधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारा उत्तरदायित्व है।
हमारे देश के बारे में वायु पुराण का यह श्लोक उल्लेखित है
हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।
तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:…..।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है…..।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है….।
ऐसा इसीलिए होता है कि आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं और, यदि किसी पश्चिमी इतिहासकार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है।
परन्तु,यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो,रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है। और यह भ्रांतिपूर्ण अवधारणा है..।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है। परन्तु आश्चर्य जनक रूप से हमने यह नही सोचा कि एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल,डेढ़
साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे,यह कैसे संभव है ?
विशेषत: तब जबकि उसके आने के समय यहां यातायातके अधिक साधन नही थे.. और,वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में सिर्फ इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है।
और ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं इसीलिए अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए।
क्योंकि इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है जैसा कि इसके विषय में माना जाता है, बल्कि,इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है।
प्रत्यंचा सनातन संस्कृति
इसीलिए हिन्दुओं जागो और, अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो…..! हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं और,हमें गर्व होना चाहिए कि…. हम हिन्दू हैं…!
जयति पुण्य सनातन संस्कृति★
जयति पुण्य भूमि भारत★
जयतु जयतु हिन्दूराष्ट्रं★
सनातन धर्म की जय★
सनातन साम्राज्य की जय★
भगवा ध्वज की जय★
सदा सर्वदा सुमंगल★
हर हर महादेव★
वंदेभारतमातरम★
जय भवानी★
बहुत ही बढ़िया पोस्ट लिखा है आपने
बहुत अच्छा वर्णन किया है आपने। इस सम्बंध में में बिल्कुल अज्ञानी हूँ। इसलिए सुझाव देने में असमर्थ हूँ। ज्ञान वर्धन के लिए धन्यवाद।
समय देने एवं अभिरुचि लेने के लिए आपका धन्यवाद
अपना जम्बूद्वीप के संबंध में जानकारी पा कर बहुत आनंद होता है हमें भारत खंड में जन्म होने का ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अर्पण करते हैं। जय सियाराम 🙏
आपको जम्बूद्वीप लेख पढ़कर आनद आया ये जानकार अच्छा लगा। धन्यवाद।
Ati Sunder, La-ja-wab, Bahut Hi Badh-ya.
Jambu dip ke विषय में sargarbhit जानकारी के लिए आपको बहुत बहुत sadhuvad एवं धन्यवाद
Aapke post ko padhkar bahut achha laga and kaafi knowledge bhi mila. Jambudweep ke baare me aapne bahut hi details me explain kiya hai, iske liye aapko dhanyavaad. Jai Hind
यह लेख आँखें खोलने वाला है! आर्य सनातन वैदिक हिंदू धर्म और संस्कृती के बारे मे अज्ञान को दूर करने वाला है सभी को ये जानकारी लेनी चाहिये
हृदयतल से साधुवाद🙏
इस लेख को विस्तार से पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद्। ऐसे और भी जानकारी के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे।
Thank you so much nice information sir
You are welcome Sir. Please Stay with us for more topics like this.