Last Updated on August 14, 2023 by Manu Bhai
Mahashivratri ka Mahatva
महाशिवरात्रि का महत्त्व क्या है? और क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि
MahaShivratri ka Mahatva kya hai ? : हिन्दु कैलेंडर के अनुसार शिवरात्रि तो हर महीने के त्रियोदशी को पड़ती है लेकिन महाशिवरात्रि के पर्व पुरे सालभर में एकबार हीं आती है. फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी-चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के पर्व को मनाया जाता है.
सनातन धर्म (जिसे हिन्दु धर्म भी कहते हैं) में महाशिवरात्रि के पर्व महत्व का इसलिए भी है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है. महाशिवरात्रि के पर्व को आध्यात्मिक रूप से प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है.
महाशिवरात्रि के पर्व पर शिवभक्त इस दिन उपवास व्रत रखते हैं और अपने आराध्य भगवान शिवशंकर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इसलिए दिन शिवभक्त मंदिरो में जाकर विशेष प्रकार का विधिवत पुजा करते हैं.
भक्तजन भोलेनाथ की प्रतिमा अथवा शिवलिंग पर पर जलाभिषेक करते हैं. शिवभक्त भगवान को प्रसन्न करने के बिल्बपत्र, बेलपत्र, पुष्प, नैवेद्य इत्यादि शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.
लेकिन क्या आपको पता है कि महाशिवरात्रि के पर्व को मनाने के पीछे की घटना क्या है?
Mahashivratri ka Mahatva और शिवलिंग के रूप में शिव जी का प्राकट्य
इसे भी जाने :
सनातन धर्म की कोई एक ग्रन्थ नहीं है, बल्कि कई धार्मिक ग्रन्थ हैं और सभी में अलग कथाओं का वर्णन है. परन्तु देवाधिदेव महादेव शिवशंकर के बारे में सभी ग्रंथों में कमोबेश एक जैसी हीं कथा मिलती है.
उन्हीं पौराणिक ग्रंथों में से एक है शिव महापुराण, शिव महापुराण के कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के पर्व की कथा कहती है कि इसी दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे. पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णन कि शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में हुआ था.
शिवलिंग भी ऐसा कि जिसका न तो आदि था और न अंत. शिवमहापुराण में बताया गया है कि एकदिन शिवलिंग का पता लगाने के लिए स्वयं ब्रह्माजी हंस के रूप में उड़ते हुये शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए. लाख कोशिश करने के बाद भी ब्रम्हाजी शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए.
वहीं दूसरी ओर भगवान श्री हरी विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला.
Mahashivratri ka Mahatva: सर्वप्रथम 64 विशिष्ट स्थानों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग
एक और पौराणिक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन हीं शिवलिंग विभिन्न 64 स्थानों पर प्रकट हुए थे. उन्हीं पावन स्थानों में से 12 पुण्य स्थान आज भी मौजूद है. इन्हीं 12 शिवलिंग को हम द्वादश ज्योतिर्लिंग अथवा 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं.
श्लोक :
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम् ॥
इन्हे भी जाने
हिन्दी कविता पथ भूल न जाना पथिक कहीं
द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम इस प्रकार है:-
द्वादश ज्योतिर्लिंग विवरण
12 ज्योतिर्लिंग कहाँ कहाँ है (12 jyotirlinga List)
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (Somnath Jyotirlinga) प्रभास पाटन, सौराष्ट्र Somnath Gujrat
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (MallikaArjun Jyotirlinga) Shrisailam कुर्नूल Andhra Pradesh
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga) उज्जैन Ujjain Madhya Pradesh
4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirlinga) मालवा क्षेत्र Malva Madhya Pradesh
5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Kedarnath Jyotirlinga) Uttarakhand
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) पुणे के सहाद्रि पर्वत क्षेत्र Maharashtra
7. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Kashi Vishwanath Jyotirlinga) Varanasi , Uttar Pradesh
8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (Trayambkeshwar Jyotirlinga) गोदावरी नदी के निकट Nasik, maharashtra
9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (Baidhyanath Jyotirlinga) देवघर Jharkhand
10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirlinga) Gujrat
11. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (Rameshwaram Jyotirlinga) दक्षिण भारत, रामेश्वरम Tamilnadu
12. घृष्णेश्वर मन्दिर ज्योतिर्लिंग (Grineshwara Jyotirlinga) Maharashtra
महाशिवरात्रि के पर्व पर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं. महाकालेश्वर में दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं जिससे कि लोग भगवान शिव के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें। इस मंदिर में जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए हों. ऐसा शिवलिंग जिसकी न तो आदि था और न ही अंत।
शिव रुद्राष्टकम (Shiv Rudrashtkam) Shri Rudrashtkam
श्री रुद्राष्टकम महाकवि श्री तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया प्रसिद्द शिव स्तुति मन्त्र है। रुद्राष्टकम भगवान भोलेनाथ शिवशंकर की उपासना करने की सर्वोत्तम मन्त्र हैं जिसमे भगवन शिव के रूप, सौन्दर्य, बल का भाव विभोर का सुन्दर चित्रण किया गया हैं। यह रुद्राष्टक काव्य की भाष संस्कृत है। इस रुद्राष्टकम को मैंने अपने राग में गाने का एक प्रयास किया है, कृपया निचे दिए गए वीडियो पर क्लिक कर के देखें। लिंक पर क्लिक करें ।
शिव रुद्राष्टकम वीडियो
शिव उपासना “श्री रुद्राष्टकम”
शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है महाशिवरात्रि Shiv-Shakti Milan
महाशिवरात्रि के पर्व शिव और माता पार्वती के मिलन अर्थात उनके विवाह के रूप में भी मनाया जाता है. महाशिवरात्रि को पुरे भारतवर्ष में शिवमंदिरो को विशेष प्रकार से सजाया जाता है. शिवलिंग कि सजावट इतनी मनोरम होती है कि मानो भगवान शिव स्वयं प्रकट हों गये हों.
महाशिवरात्रि को भक्तजन पूरी रात अपने आराध्य महादेव शिवशंकर और माता पार्वती का जागरण करते हैं. सभी शिवभक्त महाशिवरात्रि के पर्व के दिन शिवजी की शादी का उत्सव धूमधाम से मनाते हैं. ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन को हीं भगवान शिव के साथ माता शक्ति की विवाह हुई थी.
पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन फाल्गुन त्रियोदशी को शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन की शुरुआत किया था. शिव को महायोगी भी कहते हैं और शिव जो वैरागी थे, वह गृहस्थ बन गए.
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Author : मनोरंजन पाण्डेय
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