पंचतंत्र की कहानियां हिंदी में: प्रारंभ की कथा-मित्रभेद | Panchtantra Ki Kahaniya : Mitrabhed Prarambh Ki Katha :

Last Updated on December 6, 2023 by Manu Bhai

पंचतंत्र की कहानियां हिंदी में : नीतिशास्त्र की इस प्राचीन अद्भुत ग्रन्थ की रचना आज से लगभग 1600 साल पहले श्री विष्णु शर्मा ने की थी जो आज भी बहुत लोकप्रिय एवं प्रासांगिक है। इसका अनुवाद दुनिया भर के कई भाषाओँ में की गयी है। पंचतंत्र की कहानियों के माध्यम से बच्चों के कोमल मन में बातों को गहराई तक पहुंचाया जा सकता है। यह एक ऐसा तरीका है जिसे बच्चे आसानी से सिखते और समझते हैं। यह कहानियां उन्हें बेहतर सीख, संस्कार और जीवन में अच्छी चीजों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। पंचतंत्र की कहानियां ना केवल मनोरंजक होती हैं बल्कि पंचतंत्र की कथाएं व्यावहारिक भी होती हैं जो बच्चों के लिए सरल और आसान भाषा में लिखी गयी हैं, ताकि उनके कोमल मन पर गहरी छाप छोड़ सकें। इसीलिए बचपन में सुनी कहानियां और उनकी सीख आम जीवन में भी मार्गदर्शक के रूप में काम आती हैं।

पंचतंत्र को पांच तंत्रों (भागों) में विभाजित किया गया है: मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव और अलगाव), मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति और उसके लाभ), काकोलुकीयम् (कौवे और उल्लूओं की कथा), लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना), अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो, उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में कदम न उठाएँ)। पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुष्य-पात्रों के अलावा कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा के पात्र बनाया गया है और उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलाईं गई हैं।

पंचतंत्र के पांच भाग निम्नलिखित हैं :-

  • 1. मित्र भेद ( मित्रों के बीच भेद या अलगाव) Mitra Bhed or Seperation
  • 2. मित्र लाभ या मित्र सम्प्राप्ति (मित्र प्राप्ति और उसके लाभ) Mitra Labh
  • 3. काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा) Crows and Owl Stories
  • 4. लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना)
  • 5. अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)
  • पंचतंत्र में मनुष्य के अलावा पशु पक्षी भी पात्र हैं। साधारण तरीके से असाधारण बात पंडित विष्णु शर्मा जी ने बतलाया है।

लोग अक्सर पंचतंत्र की कहानी गूगल पर ढूंढते हैं पर सभी जगह अधूरी कहानिया होती है , इसी कारण ह्यूमेन आपके लिए पंचतंत्र की कहानियों की पूरी सीरीज लाएं हैं। Panchtantra ki kahani, Panchatantra stories, Panchatantra stories in English, The Panchatantra story in English, panchtantra ki kahani in hindi, Panchtantra ki kahaniya in hindi, A Panchatantra story in Hindi pdf, Panchtantra Ki Katha

Vishnu Sharma ki Panchtantra ki Kahaniya

Panchtantra Story in Hindi

पंचतंत्र का पहल तंत्र मित्र-भेद – पंचतंत्र की कहानियां हिंदी में

क्रम संख्यातंत्र विवरणकहानी का नाम
1कथामुख-पंचतंत्रकथामुख-पंचतंत्र का प्रारम्भ
2मित्र भेदबन्दर और लकड़ी का खूंटा
3मित्र भेदसियार और ढोल
4मित्र भेदपंचतंत्र – व्यापारी का पतन और उदय
5मित्र भेदपंचतंत्र -दुष्ट सर्प और कौवे
6मित्र भेदपंचतंत्र – मूर्ख साधू और ठग
7मित्र भेदपंचतंत्र – लड़ते बकरे और सियार
8मित्र भेदपंचतंत्र – बगुला भगत और केकड़ा
9मित्र भेदपंचतंत्र – चतुर खरगोश और शेर
10मित्र भेदपंचतंत्र – खटमल और बेचारी जूं
11मित्र भेदपंचतंत्र- रंगा सियार
12मित्र भेदपंचतंत्र – शेर, ऊंट, सियार और कौवा
13मित्र भेदपंचतंत्र – टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान
14मित्र भेदपंचतंत्र – मूर्ख बातूनी कछुआ
15मित्र भेदपंचतंत्र – तीन मछलियां
16मित्र भेदपंचतंत्र -हाथी और गौरैया
17मित्र भेदपंचतंत्र -सिंह और सियार
18मित्र भेदपंचतंत्र – चिड़िया और बन्दर
19मित्र भेदपंचतंत्र – मित्रद्रोह का फल
20मित्र भेदपंचतंत्र- मूर्ख बगुला और नेवला
21मित्र भेदपंचतंत्र – जैसे को तैसा
22मित्र भेदपंचतंत्र – मुर्ख मित्र

आप पढ़ रहे हैं पंचतंत्र की कहानियां हिंदी में

कथामुख-पंचतंत्र , प्रारंभ की कथा – मित्र-भेद

एक समय की बात है, दक्षिण भारत के एक जनपद में महिलारोप्य नामक एक नगर था। वहां के राजा का नाम अमरशक्ति था और वह बहुत ही पराक्रमी और उदार व्यक्ति था। राजा अमरशक्ति को सम्पूर्ण कलाओं में पारंगत, विद्वान्‌, गुणी और प्रतिभाशाली शासक था। उनके तीन पुत्र थे – बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति, लेकिन दुर्भाग्यवश वे उसके विपरीत थे। उनमें उद्दंडता, अज्ञानता और दुर्विनीति कूट कूट कर भरी थी।

राजा की मन में उसके मूर्ख और अज्ञानी पुत्रों के लिए चिंता बढ़ती जा रही थी। एक दिन उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा, “ऐसे मूर्ख और अविवेकी पुत्रों से अच्छा तो निस्संतान रहना होता है। पुत्रों के मरण से भी इतनी पीड़ा नहीं होती, जितनी मूर्ख पुत्र से होती है। मर जाने पर तो पुत्र एक ही बार दुःख देता है, किंतु ऐसे पुत्र जीवन-भर अभिशाप की तरह पीड़ा तथा अपमान का कारण बनते हैं। हमारे राज्य में तो हजारों विद्वान्, कलाकार एवं नीतिविशारद महापंडित रहते हैं। कोई ऐसा उपाय करो कि ये निकम्मे राजपुत्र शिक्षित होकर विवेक और ज्ञान की ओर बढ़ें।”

मंत्रियों के बीच विचार-विमर्श शुरू हो गया। समूचे मन्त्रिमंडल में से मंत्री सुमति ने कहा, “महाराज, व्यक्ति का जीवन-काल तो बहुत ही अनिश्चित और छोटा होता है। हमारे राजपुत्र अब बड़े हो चुके हैं। विधिवत्‌ व्याकरण एवं शब्दशास्त्र का अध्ययन आरंभ करेंगे तो इनकी शिक्षा पूरी होने में बहुत दिन लग जाएँगे। इनके लिए तो यही उचित होगा कि इनको किसी संक्षिप्त शास्त्र के आधार पर शिक्षा दी जाए, जिसमें सार-सार ग्रहण करके निस्सार को छोड़ दिया गया हो; जैसे हंस दूध तो ग्रहण कर लेता है, पानी को छोड़ देता है। ऐसे एक महापंडित विष्णु शर्मा आपके राज्य में ही रहते हैं। सभी शास्त्रों में पारंगत विष्णु शर्मा की छात्रों में बड़ी प्रतिष्ठा है। आप तो राजपुत्रों को शिक्षा के लिए उनके हाथों ही सौंप दीजिए, ऐसे मेरा विचार है।”

राजा अमरशक्ति को मंत्री की बात ठीक लगी और उसने आचार्य विष्णु शर्मा को आदर-सत्कार किया और विनय के साथ अनुरोध किया, “आर्य, आप मेरे पुत्रों पर इतनी कृपा कीजिए कि इन्हें अर्थशास्त्र का ज्ञान हो जाए। मैं आपको दक्षिणा में सौ गाँव प्रदान करूँगा।”

आचार्य विष्णु शर्मा ने राजा से निर्भीक स्वर में कहा, “मैं विद्या का विक्रय नहीं करता, महाराज! मुझे सौ गाँव के बदले अपनी विद्या नहीं है बेच सकता। किन्तु मैं आपको वचन देता हूँ कि छह मास में ही आपके पुत्रों को नीतियों में पारंगत कर दूँगा। यदि न कर सकूँ तो ईश्वर मुझे विद्या से शून्य कर दे!”

महापंडित विष्णु शर्मा की यह विकट प्रतिज्ञा सुनकर सभी स्तब्ध रह गए।

राजा अमरशक्ति ने मंत्रियों के साथ आचार्य विष्णु शर्मा की पूजा-अभ्यर्थना की और अपने तीनों राजपुत्रों को उनके हाथ सौंप दिया।

राजपुत्रों को लेकर विष्णु शर्मा अपने आवास पर पहुँचे। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार छह मास में ही उन्हें अर्थनीति में निपुण करने के लिए एक अत्यंत रोचक ग्रंथ की रचना की। उसमें पाँच तंत्र थे–मित्रभेद, मित्रसंप्राप्ति (मित्रलाभ), काकोलूकीयम्‌, लब्धप्रणाशम्‌ तथा अपरीक्षितकारकम्‌। इसी कारण उस ग्रंथ का नाम ‘पंचतंत्र’ प्रसिद्ध हो गया।

लोक-गाथाओं से उठाए गए दृष्टांतों से भरपूर इस रोचक ग्रंथ का अध्ययन करके तीनों अशिक्षित और उद्‌दंड राजपुत्र ब्राह्मण की प्रतिज्ञा के अनुसार छह मास में ही नीतिशास्त्र में पारंगत हो गए।

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