Last Updated on August 14, 2023 by Manu Bhai
हिन्दी कविता “पथ भूल न जाना पथिक कहीं”
Path bhool na jana pathik kahin
पथ भूल न जाना पथिक कहीं: हिन्दी कविता वास्तव मे हिन्दी काव्य साहित्य का हीं हिस्सा है, जिसका इतिहास वैदिक काल से ही माना जाता है। दोस्तों मैं हिंदी काव्य साहित्य का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं और बचपन से हीं कविताओं से मेरा लगाव रहा है। एक कविता जो बहुत ही प्रचलित है और जब हम विद्यार्थी जिवन मे थे तब यह हमारे पाठ्यक्रम का भी थी.
चूंकि अब मैं स्कुल कॉलेज का विद्यार्थी तो रहा नहीं फिर भी जीवन हमें रोज़ कुछ न कुछ सिखाती है. मेरे जीवन में बहुत सारे पल आते है जब हम खुद को हारा हुआ महसूस करता हूँ तब यह कविता बार बार मेरे लिये संजीवनी का काम करती है. मै अकसर मन ही मन इसको दुहराता हुँ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित यह कविता आज भी उतनी ही व्यवहारिक है जितना उनके समय पर रही होगी.
हिंदी कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (1915-2002)
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (1915-2002) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद थे। उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा कि “डॉ. शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ एक शक्तिशाली चिह्न नहीं थे, बल्कि वे समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। उन्होंने न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी की थी।”
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने अपने जीवन के दौरान कई उच्च पदों पर काम किया। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) के कुलपति के रूप में 1968-78 के दौरान काम किया। वे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के उपराज्यपाल भी रहे। सुमन ने 1956-61 के दौरान भारतीय दूतावास, काठमांडू (नेपाल) में प्रेस और सांस्कृतिक अटैच के रूप में काम किया। उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालय संघ (नई दिल्ली) के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था। सुमन कालिदास अकादमी, उज्जैन के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे थे। उनकी मृत्यु 27 नवंबर 2002 को दिल का दौरा पड़ने से हुई।
हिन्दी कविता का शीर्षक है ‘पथ भूल ना जाना पथिक कहीं’
पथ भूल ना जाना पथिक कहीं कविता इस प्रकार है..
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
पथ में कांटे तो होंगे ही
दुर्वादल सरिता सर होंगे
सुंदर गिरि वन वापी होंगे
सुंदरता की मृगतृष्णा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
जब कठिन कर्म पगडंडी पर
राही का मन उन्मुख होगा
जब सपने सब मिट जाएंगे
कर्तव्य मार्ग सन्मुख होगा
तब अपनी प्रथम विफलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
अपने भी विमुख पराए बन
आंखों के आगे आएंगे
पग पग पर घोर निराशा के
काले बादल छा जाएंगे
तब अपने एकाकीपन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
रण भेरी सुन कर विदा विदा
जब सैनिक पुलक रहे होंगे
हाथों में कुमकुम थाल लिये
कुछ जलकण ढुलक रहे होंगे
कर्तव्य प्रेम की उलझन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
कुछ मस्तक काम पड़े होंगे
जब महाकाल की माला में
मां मांग रही होगी आहूति
जब स्वतंत्रता की ज्वाला में
पल भर भी पड़ असमंजस में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।।
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हिन्दी कविता ‘पथ भूल ना जाना पथिक कहीं’ का भावार्थ
पथ भूल न जाना पथिक कहीं कविता का अर्थ
- प्रसंग– कवि यह बताना चाहता है कि हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ और रुकावटें आती हैं जबकि उस मार्ग में बहुत से सुहावने दृश्य भी होते हैं जो हमें अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं लेकिन फिरभी हमें उनके सौन्दर्य के भुलावे में या मृगतृष्णा में नहीं आना चाहिए। हमें तो केवल अपने कर्तव्य पथ पर आगे ही आगे बढ़ते जाना चाहिए।
व्याख्या हे पथिक ! तुम अपने मार्ग को मत भूल जाना। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ (कांटे) अवश्य ही होंगी परन्तु इसके विपरीत वहाँ कोमल दूब घास के पत्ते भी होंगे, नदियों के अच्छे-अच्छे दृश्य भी होंगे। मनोरम तालाब भी होंगे। पर्वतों, वनों और बावड़ियों के अति सुन्दर जंगल होंगे। -वहाँ अति सुन्दर झरने भी होंगे परन्तु हे राहगीर तुझे यह ध्यान – रखना पड़ेगा कि सुन्दरता का भ्रम, तुझे अपने लक्ष्य प्राप्ति के -सही मार्ग से भटका न दे। तू अपने सही मार्ग को भूल मत जाना।
- प्रसंग-कवि यह परामर्श देता है कि कर्म के मार्ग पर चलते रहने से कल्पनाएँ अपने आप मिट जाती हैं। वे साकार होने लगती हैं।
व्याख्या-अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में पथिक के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती ही हैं, राही का मन कई बार इनमें घिरकर उदास हो उठता है। जब उसकी कल्पनाएँ मात्र कल्पनाएँ लगने लगती हैं। तब उसके सामने केवल कर्त्तव्य मार्ग ही होता है।
यदि किसी कारण से पहली बार उसे असफलता मिलती है तो भी
उस कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने वाले राहगीर को अपना मार्ग नहीं भुला देना चाहिए। वह मार्ग से भटक न जाय अर्थात् उसे अपने कर्तव्य को पूरा करने में जुटा रहना चाहिए।
3. प्रसंग-कठिनाइयों के आ जाने पर भी अपने कर्त्तव्य मार्ग से पीछे नहीं हटना चाहिए, इस तरह की सलाह कवि देता है।
व्याख्या-कठिनाइयों के काले बादल जब चारों ओर छा जाते हैं तब कदम-कदम पर भयंकर आशाहीनता आ जाती है। उस समय अपने सगे-सम्बन्धी भी अन्य से (पराये से) बन जाते हैं। वे अपरिचित से हो जाते हैं। उस अकेलेपन में भी, हे राहगीर ! तुम्हें अपने कर्त्तव्य मार्ग से नहीं भटक जाना चाहिए।
4. सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-कर्त्तव्य निर्वाह किया जाय अथवा प्रेम का निर्वाह इस उलझी हुई पहेली के सुलझाव के लिए अपने कर्तव्य के मार्ग को मत भूल जाना, ऐसी सलाह देकर कवि राहगीर को अपने कर्त्तव्य पथ पर आगे ही आगे बढ़ते रहने का सदुपदेश देता है।
व्याख्या – युद्ध प्रारम्भ होने की ध्वनि सुनते-सुनते, सैनिक रोमांचित हो रहे होंगे। वे युद्ध क्षेत्र के लिए विदा होने की तैयारी कर रहे होंगे। युद्ध (कर्तव्य पथ पर बढ़ने के लिए) को जाते समय वह (प्रियतमा) कुमकुम से सजा हुआ थाल अपने हाथों में लिए हुए अपने नेत्रों से प्रेमाश्रु बहाती हुई हो सकती है। उन प्रेमाश्रुओं को देखकर तथा समक्ष ही कर्तव्य पूरा करने की घड़ी सामने होने पर पैदा हुई उलझन में, हे राहगीर तुम अपने कर्तव्य मार्ग से इधर-उधर भटक मत जाना।
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- सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग – किसी भी प्रकार की दुविधा में पड़े बिना कर्तव्य | का निर्वाह करते रहना चाहिए।
व्याख्या – युद्ध की देवी उन बहादुर वीरों की संख्या कम होने पर अन्य युद्धवीरों के आने की प्रतीक्षा कर रही होगी क्योंकि महाकाल की माला में आजादी की खातिर अपने मस्तक को काटकर चढ़ाने वाले युद्ध वीरों की संख्या कुछ कम पड़ सकती है। वह युद्ध की देवी, नौजवान युवकों की आहुति आजादी को प्राप्त करने की प्रज्ज्वलित आग में देने के लिए, सभी से माँग कर रही है। कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए, किसी भी असमंजस 1 में नहीं पड़ें। उन्हें तो अपने कर्तव्य मार्ग का ही ध्यान होना चाहिए। कर्त्तव्य मार्ग से हट जाने की भूल न हो जाये।
आशा करता हुँ आपको यह प्रेरणा से भर देने वाली कविता पसंद आयी होगी. कृपया कमेंट कर बतायें.
धन्यवाद.
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FAQ पथ भूल ना जाना पथिक कहीं’
पथिक क्यों भटक सकता है?
A. पथिक सुंदरता के कारण भटक सकता है।
कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ कहना चाहते हैं कि हमारे लक्ष्य तक पहुंचने के मार्ग में कई अड़चनें और बाधाएं होती हैं, जबकि इस मार्ग पर कई सुंदर दृश्य होते हैं जो हमें आकर्षित करते रहते हैं, लेकिन हम अभी भी उन दृश्यों की सुंदरता में भ्रमित या माया से प्रभावित हैं।
महाकाल की माला से कवि का क्या तात्पर्य है?
युद्ध की देवी उन बहादुर वीरों की संख्या कम होने पर अन्य युद्धवीरों के आने की प्रतीक्षा कर रही होगी। यह इसलिए कि महाकाल की माला में आजादी के लिए अपने मस्तक को काटकर चढ़ाने वाले युद्ध वीरों की संख्या कुछ कम हो सकती है।
पथिक कविता का मूल भाव क्या है?
पथिक’ कविता में संसार के दुःखों से विरक्त काव्य नायक पथिक की प्रकृति के सौंदर्य पर मोहित होकर उसी स्थान पर बसने की इच्छा का वर्णन किया गया है। यहां उसे किसी संत के द्वारा संदेश प्राप्त करके राष्ट्रसेवा का व्रत लेना पड़ता है। राजा उसे मृत्युदंड देता है, लेकिन उसकी महिमा समाज में बनी रहती है। समुद्र तट पर खड़ा हुआ पथिक, उसके सौंदर्य पर मोहित होता है।
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